IndiGo: सबसे बड़ी एयरलाइन पर 21,000 करोड़ की चोट, आसमान की बादशाहत से संकट के गहरे भंवर में फंस गई इंडिगो
भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो इस समय अपने इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। रोजाना लगभग 2300 फ्लाइट्स ऑपरेट करने वाली और घरेलू एविएशन मार्केट में 60% से भी अधिक हिस्सेदारी रखने वाली इस एयरलाइन का मार्केट कैप मौजूदा संकट के बाद करीब 21,000 करोड़ रुपये तक घट चुका है। पायलट यूनियन खुले तौर पर मैनेजमेंट पर आरोप लगा रहा है, सरकार किराये पर नियंत्रण लगाने को मजबूर हो चुकी है और आम यात्रियों के लिए हवाई सफर ट्रेन के वेटिंग लिस्ट जैसा तनाव बन गया है। अहम सवाल यह उभरता है कि भारतीय आसमान पर तेजी से प्रभुत्व स्थापित करने वाली इंडिगो आखिर उसी ढांचे के बोझ तले क्यों चरमराने लगी है जिसे उसकी सबसे बड़ी ताकत माना जाता था। नागरिक उड्डयन मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों, डीजीसीए के तकनीकी विशेषज्ञों और स्वतंत्र एविएशन विश्लेषकों के अनुसार मौजूदा संकट सिर्फ परिचालन चूक नहीं है, बल्कि एयरलाइन के स्टाफिंग मॉडल, नेटवर्क लचीलापन और नियामकीय बदलावों के प्रति तैयारी की गहरी परीक्षा भी है। निवेशकों की बढ़ी चिंता, समझिए कैसे इंडिगो की मूल कंपनी इंटरग्लोब एविएशन का मार्केट कैप घटने से निवेशकों की चिंता बढ़ गई है। बाजार इस गिरावट को सिर्फ एक्सीडेंटल सेटबैक की तरह नहीं देख रहा, बल्कि पायलट मैनेजमेंट, स्टाफिंग और शेड्यूलिंग रणनीति में गहरे ढांचेगत तनाव का संकेत मान रहा है। पायलट यूनियन का आरोप है कि मैनेजमेंट को नए ड्यूटी नियमों की जानकारी पहले से थी, लेकिन पर्याप्त तैयारी नहीं की गई। उत्थान की शुरुआत: मध्य वर्ग के युवा का अधूरा टेलिकॉम सपना दिल्ली के मध्य वर्ग परिवार के राहुल भाटिया ने राकेश गंगवाल के साथ इंडिगो एयरलाइन की शुरुआत की थी। 1984 में कनाडा से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर भारत लौटे भाटिया टेलिकॉम बिजनेस खड़ा करना चाहते थे। उनके पिता की दिल्ली एक्सप्रेस नाम से एयरलाइन टिकट बुकिंग एजेंसी थी। पिता की खराब सेहत और कुछ अन्य कारणों से वह परिवार के व्यवसाय में आए। एनआरआई एविएशन विशेषज्ञ राकेश के साथ 2004 में इंटरग्लोब एविएशन लि. की नींव रखी। उसी साल इंडिगो एयरलाइन को ऑपरेटिंग लाइसेंस मिला और कंपनी ने भारतीय उड्डयन बाजार में कदम रखा। पेरिस एयर शो में बड़ा कदम 2005 में पेरिस एयर शो के दौरान इंडिगो ने वैश्विक एविएशन जगत को चौंका दिया। कंपनी ने एकसाथ एयरबस ए-320 के 100 विमानों का ऑर्डर दे दिया, जिसकी वैल्यू 5.43 लाख करोड़ रुपये आंकी गई। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक राहुल-राकेश ने 100 करोड़ की शुरुआती पूंजी से कंपनी शुरू की थी, इसलिए सवाल स्वाभाविक था कि इतने बड़े ऑर्डर का वित्तीय प्रबंधन कैसे हुआ। बाद में स्पष्ट हुआ कि इंडिगो को महज 4 फीसदी डाउन पेमेंट पर 100 विमान लेने का अवसर मिला और इस पर लगभग 40 फीसदी तक की छूट भी मिली। भरोसे की ब्रांडिंग कंपनी को 28 जुलाई, 2006 को पहला एयरबस मिला और 4 अगस्त को दिल्ली से गुवाहाटी के लिए पहली वाणिज्यिक उड़ान ने उड़ान भरी।पहले चार साल के भीतर ही उसने एअर इंडिया को पीछे छोड़ते हुए लगभग 17.3 फीसदी मार्केट शेयर के साथ भारत की तीसरी सबसे बड़ी एयरलाइन का स्थान हासिल कर लिया। एयरलाइन ने खुद को तीन शब्दों में ब्रांड किया समय पर, सस्ता और सरल। साझेदारी में पड़ी दरारपान की दुकान से तुलना, कैसे जैसे-जैसे इंडिगो का आकार बढ़ता गया, वैसे-वैसे विस्तार की गति और कॉर्पोरेट गवर्नेंस को लेकर मतभेद सामने आने लगे। रिपोर्टों के अनुसार 2018-2019 के आसपास राकेश गंगवाल चाहते थे कि इंडिगो अपनी क्षमता में तेजी से विस्तार करे। कंपनी के तत्कालीन प्रेसिडेंट आदित्य घोष और राहुल भाटिया तेज वृद्धि को जोखिमपूर्ण मानते थे और अधिक नियंत्रित गति से आगे बढ़ना चाहते थे। धीरे-धीरे मतभेद बढ़े, कॉर्पोरेट गवर्नेंस पर सवाल उठे और गंगवाल ने सार्वजनिक रूप से इंडिगो के संचालन की तुलना पान की दुकान से कर दी। लंबे चले विवाद के बाद 2022 में राकेश गंगवाल ने बोर्ड से इस्तीफा दे दिया, हालांकि वे शेयरहोल्डर बने रहे। विशाल बेड़ा गौरतलब है कि इंडिगो के बेड़े में 417 विमान हैं। रोजाना 2300 से अधिक उड़ानें संचालित करती है। 90 से ज्यादा घरेलू, 40 से अधिक अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों को जोड़ती है। घरेलू मार्केट में इसका शेयर करीब 61.4% के आसपास माना जाता है। यानी घरेलू उड़ान भरने वाले हर 10 में से 6 भारतीय इंडिगो से सफर कर रहे हैं। कंपनी का दावा है कि वह विमानों को हर 6 वर्ष में रिटायर कर देती है। हालांकि उल्टा पहलू यह है कि जब भी शेड्यूलिंग, पायलट उपलब्धता या सुरक्षा अलर्ट में रुकावट आती है, तो असर पूरे नेटवर्क में दिखता है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 07, 2025, 08:26 IST
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