Jabalpur News: आस्था सोसायटी को हाईकोर्ट से झटका, ईओडब्ल्यू जांच जारी रखने के आदेश

आस्था एजुकेशन सोसायटी के पदाधिकारियों ने आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ के द्वारा दर्ज किये गये प्रकरण को निरस्त किये जाने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। हाईकोर्ट जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि प्राथमिकी का पंजीकरण हमारे देश के प्रसिद्ध लेखा परीक्षकों द्वारा किए गए ऑडिट पर आधारित है, जिनकी रिपोर्टें सरकार द्वारा विभिन्न स्तरों पर स्वीकार की जाती हैं। रिपोर्टें स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि बड़ी राशि का वित्तीय गबन हुआ है। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ द्वारा मामले की विस्तृत जांच की आवश्यकता है। आस्था सोसायटी, इंदौर की पदाधिकारी श्वेता चौकसे, जय नारायण चौकसे, धर्मेन्द्र गुप्ता तथा अनुपम चौकसे की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि उसकी सोसायटी कई शैक्षणिक संस्थान, मेडिकल कॉलेज और उससे संबद्ध एक अस्पताल चलाती है। आस्था सोसायटी एक निजी सोसायटी है जो मध्य प्रदेश सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1973 के प्रावधानों के तहत पंजीकृत है। सरकार से किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं लेते हैं। आस्था सोसायटी वर्तमान में आस्था सोसाइटी का गठन वर्ष 2007 में हुआ था और समय-समय पर इसके संविधान और प्रबंधन में परिवर्तन हुए हैं। ये भी पढ़ें-धनतेरस पर रोशन हुए घर, पूरी हुई सपनों की दीपावली:सीएम डॉ. मोहन बोले, “मकान के सुख से बड़ा कोई सुख नहीं” याचिका में अनावेदक अनिल सांधवी पूर्व में सोसायटी के सदस्य थे। सोसायटी के चुनाव साल 2016 के आजीवन सदस्यों के आधार पर करवाये जाने के संबंध में उनके तथा संस्था के बीच हाईकोर्ट और सर्वोच्च न्यायालय तक याचिका दायर की गई। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लंबित है। अनावेदक राहुल सांघवी तथा अनिल सांघवी राजवंशी एंड एसोसिएट्स और एबीएमएस एसोसिएट्स से ऑडिट रिपोर्ट प्राप्त उनके खिलाफ ईओडब्ल्यू में शिकायत की थी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से तर्क दिया गया कि पूर्व में भी अनावेदकों ने उनके खिलाफ ईओडब्ल्यू में शिकायत की थी। वर्तमान मामले में भी वह आरोप है तो पूर्व की शिकायत में लगाये गये थे। जिसे जांच के बाद ईओडब्ल्यू ने रिजेक्ट कर दी थी। ईओडब्ल्यू ने बिना नोटिस जारी किये तथा स्पष्टीकरण का अवसर दिये बिना उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लिया है। याचिकाकर्ता ने अपनी गिरफ्तारी की संभावना भी याचिका में व्यक्त की थी। ईओडब्ल्यू की तरफ से सुनवाई के दौरान एकलपीठ के समक्ष केस डायरी प्रस्तुत करते हुए एफआईआर का समर्थन किया । ईओडब्ल्यू की तरफ से बताया गया कि मामला प्रारंभिक जांच के चरण में है और इस स्थिति में उसे रद्द करना विधि संगत नहीं होगा। आर्थिक अपराध शाखा का उद्देश्य राज्य और देश के नागरिकों की आर्थिक अपराधियों से रक्षा करना और उनकी सेवा करना है और समाज के विरुद्ध कुछ विशेष सफेदपोश अपराधों की जांच करना है। जिनके लिए नियमित पुलिस पूरी तरह से सुसज्जित या प्रशिक्षित नहीं है। जैसे आर्थिक अपराध, बड़ी मात्रा में सार्वजनिक धन से जुड़ी धोखाधड़ी, लोक सेवकों द्वारा धन छिपाना, सरकारी करों और बकाया राशि की चोरी आदि और आर्थिक अपराधों में लिप्त लोगों की संपत्ति जब्त करने में सहायता करना। याचिका की सुनवाई के बाद एकलपीठ ने याचिका का निरस्त करते हुए अपने आदेष में कहा है कि आर्डिट रिपोर्ट में दो सौ करोड रूपये कि आर्थिक अनियमिकता बताई गयी है। वर्तमान परिस्थितियों में याचिकाकर्ताओं को किसी प्रकार की राहत प्रदान नहीं कर सकते है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 18, 2025, 20:46 IST
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