Kaal Bhairav Jayanti 2025: 12 नवंबर को काल भैरव जयंती, जानिए कौन है भगवान काल भैरव और पूजा विधि

हिंदू धर्म में भगवान काल भैरव को पापों का नाशक, न्याय के रक्षक और भक्तों के संकट हरने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। वे भगवान शिव के सबसे रौद्र और शक्तिशाली रूप हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान काल भैरव का प्राकट्य हुआ था। इसी दिन को काल भैरव जयंती या काल भैरव अष्टमी कहा जाता है। इस बार काल भैरव जयंती बुधवार 12 नवंबर को मनाई जा रही है। काल भैरव अष्टमी का महत्व पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से भय, शत्रु, रोग और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। इस दिन भैरव जी की आराधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय होता है और उसे जीवन में सफलता, बल और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।भैरव चालीसा, भैरव स्तोत्र या काल भैरव अष्टक का पाठ करने से मनोवांछित फल मिलता है। इस दिन किया गया उपवास और पूजा अत्यंत शुभ माना जाता है। Shukrawar Ke Upay:शुक्रवार को करें ये खास उपाय, नहीं होगी रुपयों पैसों को दिक्कत पूजा विधि काल भैरव अष्टमी के दिन श्रद्धालु प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और भगवान शिव तथा काल भैरव का ध्यान करते हैं। इसके बाद घर या मंदिर में भगवान भैरव की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाकर पूजा की जाती है। उन्हें काले तिल, उड़द, सरसों का तेल, नारियल, नींबू और मदिरा का भोग लगाया जाता है, क्योंकि ये वस्तुएं भैरव जी को प्रिय हैं। पूजा के समय “ॐ कालभैरवाय नमः” मंत्र का 108 बार जप विशेष फलदायी माना गया है। रात्रि में भैरव स्तोत्र, भैरव चालीसा या काल भैरव अष्टक का पाठ करना अत्यंत शुभ होता है। इस दिन काले कुत्ते को भोजन कराना भी जरूरी माना गया है, क्योंकि वह भैरव जी का वाहन है। ऐसा करने से भैरव जी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। Surya Argya Niyam:सूर्य को अर्घ्य देने के बाद जरूर करें ये काम, तभी मिलते हैं इसके पूर्ण फल काल भैरव प्राकट्य की कथा पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बीच यह विवाद हुआ कि सृष्टि में सबसे श्रेष्ठ कौन है। उस समय ब्रह्मा जी ने भगवान शिव का अपमान कर दिया। इस पर शिवजी अत्यंत क्रोधित हो गए और उनके क्रोध से एक दिव्य प्रकाश उत्पन्न हुआ, जिससे भगवान काल भैरव का जन्म हुआ। भगवान काल भैरव ने अपने त्रिशूल से ब्रह्मा जी का एक सिर काट दिया। इस कारण उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लगा और वे इस पाप से मुक्ति पाने के लिए समस्त तीर्थों में भटकते रहे। अंततः वाराणसी में उन्होंने ब्रह्महत्या से मुक्ति पाई। तभी से वाराणसी को काल भैरव की नगरी कहा जाने लगा, और भैरव जी को काशी का रक्षक देवता माना गया। पूजा का फल धार्मिक विश्वास के अनुसार, जो व्यक्ति काल भैरव अष्टमी के दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक उपवास रखकर भगवान भैरव की पूजा करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। उसके जीवन से सभी प्रकार के संकट, भय और दुख दूर हो जाते हैं। भैरव जी की कृपा से व्यक्ति के जीवन में स्थिरता, सफलता और आत्मबल बढ़ता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 08, 2025, 17:17 IST
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