SC: 'अधिकारियों की निंदा करने में हमारी रुचि नहीं, अरावली की सुरक्षा प्राथमिकता', सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह अधिकारियों की निंदा करने में रुचि नहीं रखता, बल्कि उसकी मुख्य चिंता अरावली की पहाड़ियों और श्रृंखलाओं की सुरक्षा है।शीर्ष कोर्ट ने अरावली की एक समान परिभाषा तय करने के लिए बनाई गई समिति को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए दो महीने का और समय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने परिभाषा तय करने के लिए दिया था समय यह मामला अरावली की पहाड़ियों में अवैध खनन से जुड़ा है। मई 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई थी कि अरावली की पहाड़ियों की परिभाषा हर राज्य में अलग-अलग है, जो कि एक बड़ा मुद्दा है।तब कोर्ट ने निर्देश दिया था कि एक समिति का गठन किया जाए जो दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात से गुजरने वाली अरावली श्रृंखला की एक समान परिभाषा तय करे। पिछले साल 27 मई को सुप्रीम कोर्ट ने समिति को निर्देश दिया था कि वह प्रक्रिया को तेज करे और दो महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपे। आज यह मामला चीफ जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन. वी. अंजारिया की बेंच के सामने सुनवाई के लिए आया। ये भी पढ़ें:दिल्ली-एनसीआर में 10-15 साल पुराने वाहनों को फिलहाल राहत, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सख्ती न करें केंद्र ने मांगा दो महीने का अतिरिक्त समय केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एसजी) ऐश्वर्या भाटी पेश हुए। उन्होंने बताया कि संबंधित अधिकारियों के साथ कई बैठकें कई गई हैं और मिली जानकारी का विश्लेषण किया जा रहा है। भाटी ने पूरे अरावली क्षेत्र के विश्लेषण के लिए दो महीने का अतिरिक्त समय मांगा। बेंच ने याद दिलाया कि 27 मई को बताया गया था कि मुख्य समिति और तकनीकी समिति की कई बैठकें हो चुकी हैं और रिपोर्ट अंतिम चरण में है।कोर्ट ने यह भी गौर किया कि मई में दिए गए दो महीने 27 जुलाई को समाप्त हो चुके हैं। 'अधिकारियों को दोषी ठहराना हमारा मकसद नहीं' शीर्ष कोर्ट ने कहा कि अरावली की अलग-अलग परिभाषाओं के काऱण राज्यों में खनन की अनुमति के लिए अलग-अलग मानक अपनाए जा रहे हैं। इसलिए एक स्पष्ट नीति जरूरी है। कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर रिपोर्ट समय पर नहीं दी गई तो समिति के सदस्य अवमानना के दोषी माने जा सकते हैं। फिर बेंच ने कहा, हम इस मामले को गंभीरता से ले सकते थे, लेकिन हमारा मकसद अधिकारियों को दोषी ठहराना नहीं है। हम केवल अरावली की रक्षा करने में रुचि रखते हैं। ये भी पढ़ें:जस्टिस वर्मा के खिलाफ जांच करने वाली समिति के सदस्य कौन हैं जानिए उनके बारे में सबकुछ समिति को 15 अक्तूबर तक का दिया समय बेंच ने यह भी कहा कि वह नहीं चाहता कि अरावली को और अधिक नुकसान पहुंचे, क्योंकि अगर खनन गतिविधियों को अनियंत्रित रूप से जारी रहने दिया जा गया तो इससे पर्यावरण को गंभीर खतरा पैदा होगा। शीर्ष कोर्ट ने समिति को 15 अक्तूबर तक का समय दिया है, ताकि वह अपनी रिपोर्ट और सिफारिशें कोर्ट में जमा कर सके। साथ ही यह भी कहा गया कि समिति को चाहिए कि वह नियमित रूप से बैठकें करे, चाहे वे ऑनलाइन ही क्यों न हों, ताकि रिपोर्ट को जल्द से जल्द अंतिम रूप दिया जा सके।नौ मई 2024 को अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अरावली में खनन गतिविधियों के मुद्दे को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय व दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजारत-इन चार राज्यों को मिलकर हल करना चाहिए।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 12, 2025, 19:55 IST
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