Report: बिहार के छह जिलों में माताओं के दूध में यूरेनियम! 70% शिशुओं पर बढ़ा जोखिम, लेकिन घबराने की जरूरत नहीं

बिहार के छह जिलों में स्तनपान कराने वाली माताओं के दूध में यूरेनियम (यू-238) की मौजूदगी ने स्वास्थ्य महकमे की चिंता बढ़ा दी है। एम्स दिल्ली और अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों की ओर से संयुक्त रूप से किए गए इस अध्ययन में शामिल सभी 40 नमूनों में यूरेनियम पाया गया है। अध्ययन के अनुसार, लगभग 70% शिशुओं के स्वास्थ्य का जोखिम बढ़ सकता है। हालांकि यह साफ किया गया है कि इससे कैंसर का खतरा नहीं है यह स्तर अभी स्वीकार्य सीमा से नीचे हैं और घबराने की जरूरत नहीं है। एम्स दिल्ली के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. अशोक शर्मा ने कहा, 70% शिशुओं में जोखिम का संकेत जरूर मिला है, लेकिन स्वास्थ्य पर इसका वास्तविक प्रभाव कम होने की संभावना है। माताओं को स्तनपान बंद करने की कोई जरूरत नहीं है। यह शिशु के पोषण का सबसे सुरक्षित और प्रभावी स्रोत है। अक्तूबर, 2021 से जुलाई, 2024 के बीच किए गए इस शोध में भोजपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार और नालंदा की 17 से 35 वर्ष आयु की 40 माताओं से लिए गए नमूनों का विश्लेषण किया गया। अध्ययन में पता चला कि कटिहार जिले में एक नमूने में यूरेनियम का स्तर सबसे अधिक है। खगड़िया में औसत स्तर सबसे ज्यादा है तो नालंदा में सबसे कम पाया गया। दूध में यूरेनियम की मात्रा 0-5.25 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पाई गई। सभी नमूनों में यू-238 की उपस्थिति यह संकेत देती है कि क्षेत्र की भूजल प्रणाली में भारी धातुओं की मौजूदगी है। गुर्दे, तंत्रिका संबधी हो सकती है बीमारी शोध में पाया गया कि 70% शिशुओं में हानिकारक तत्व पाया। लंबे समय तक संपर्क रहने पर शिशुओं में गुर्दे, तंत्रिका संबंधी विकास में बाधा और संज्ञानात्मक क्षमता व आईक्यू पर असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार नवजातोंका शरीर यूरेनियम जैसी भारी धातुओं को बाहर निकालने में सक्षम नहीं होता, इसलिए जोखिम की संभावना अधिक रहती है। अन्य राज्यों में भी होगी व्यापक जांच शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन आगे की बड़ी शृंखला का पहला चरण है। डॉ. शर्मा के अनुसार, हम अन्य राज्यों में भी भारी धातुओं, कीटनाशकों और पर्यावरणीय प्रदूषकों की जांच की तैयारी कर रहे हैं। पहले के अध्ययनों में आर्सेनिक, लेड और पारे की मौजूदगी पहले ही सामने आ चुकी है। देश में जैव-निगरानी यानी बायोमॉनिटरिंग की आवश्यकता अब पहले से अधिक जरूरी हो चुकी है। पेयजल में डब्ल्यूएचओ का मानक 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर, बिहार में 1.7% भूजल में इससे अधिक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पीने के पानी में यूरेनियम की अधिकतम सीमा 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर तय की है। जर्मनी सहित कुछ देशों में यह सीमा 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है। भारत में 18 राज्यों के 151 जिलों में भूजल में यूरेनियम संदूषण की रिपोर्ट में बिहार में 1.7% भूजल स्रोत यूरेनियम की समस्या से प्रभावित हैं। कनाडा, चीन, पाकिस्तान, अमेरिका और यूरोप के कई देशों में भी भूजल में यूरेनियम की अधिक मात्रा पाई गई है, हालांकि अधिकांश जगहों पर स्पष्ट स्वास्थ्य लक्षण व्यापक रूप से सामने नहीं आए हैं। पानी में कैसे मिल जाता है यूरेनियम यूरेनियम एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला रेडियोधर्मी तत्व है, जो ग्रेनाइट और अन्य चट्टानों में पाया जाता है। यह प्राकृतिक निक्षालन यानी घुलनशील प्रक्रिया के माध्यम से खनन, कोयला दहन, परमाणु उद्योगों से उत्सर्जन और फॉस्फेट-आधारित उर्वरकों के उपयोग जैसी मानवीय गतिविधियों के माध्यम से भूजल में प्रवेश कर सकता है। सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए ग्रामीण क्षेत्रों में भारी धातुओं की स्क्रीनिंग को लेकर अभियान चलाया जाए। बिहार में पहली बार माताओं के दूध में यूरेनियम की मौजूदगी का दस्तावेजी प्रमाण मिला है। यह राज्य में पर्यावरणीय प्रदूषण और भूजल की गुणवत्ता पर गंभीर चिंताएं उठाता है। शोध बताता है कि रोकथाम, जांच और जागरूकता बढ़ाकर स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। अब समय आ गया है जब सरकार, स्वास्थ्य एजेंसियां और वैज्ञानिक समुदाय मिलकर भूजल की गुणवत्ता पर सख्त निगरानी सुनिश्चित करें, क्योंकि इसका सीधा असर आने वाली पीढ़ियों पर पड़ सकता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 24, 2025, 05:54 IST
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