Supreme Court: अग्रिम जमानत के लिए केरल हाईकोर्ट की प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, 14 अक्तूबर को होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम कानूनी सवाल पर विचार करने का फैसला लिया है। अदालत यह तय करेगी कि अग्रिम जमानत यानि एंटिसिपेट्री बेल के लिए आरोपी या याचिकाकर्ता को पहले सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाना अनिवार्य है या फिर वह सीधे हाईकोर्ट जा सकता है। यह सवाल विशेष रूप से केरल हाईकोर्ट की उस प्रथा को देखते हुए उठा है, जिसमें वहां सीधे हाईकोर्ट अग्रिम जमानत की अर्जी स्वीकार करता है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि केरल हाईकोर्ट में नियमित रूप से बिना सत्र न्यायालय गए सीधे अग्रिम जमानत की अर्जी सुनी जाती है। जबकि अन्य राज्यों में ऐसा नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आखिर इस तरह की प्रथा सिर्फ केरल हाईकोर्ट में ही क्यों है। विधिक ढांचे की ओर इशारा पीठ ने कहा कि पुराने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और नए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 में स्पष्ट न्यायिक संरचना तय है। अग्रिम जमानत से संबंधित प्रावधान धारा 482 में दर्ज हैं। अदालत का मानना है कि यदि सेशंस कोर्ट को दरकिनार कर सीधे हाईकोर्ट में याचिका लगाई जाती है तो कई अहम तथ्य सामने आने से छूट सकते हैं। ये भी पढ़ें-धर्मस्थल मामले में मानव कंकाल के अवशेष मिलने से हड़कंप, बढ़ सकता है जांच का दायरा मामला किससे जुड़ा यह टिप्पणी उस समय आई जब सुप्रीम कोर्ट दो याचिकाकर्ताओं की अर्जी पर सुनवाई कर रहा था। इन याचिकाकर्ताओं की अग्रिम जमानत की मांग को केरल हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। उन्होंने सीधे हाईकोर्ट का रुख किया था, जबकि सेशंस कोर्ट में याचिका दाखिल नहीं की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह तरीका न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और संतुलन को प्रभावित कर सकता है। नोटिस और अमिकस क्यूरी की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर केरल हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया है। अदालत ने रजिस्टार जनरल के माध्यम से जवाब मांगा है। साथ ही वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा को अमिकस क्यूरी (अदालत की सहायता करने वाले वकील) नियुक्त किया गया है। अदालत इस मामले पर विस्तृत सुनवाई 14 अक्तूबरको करेगी। ये भी पढ़ें-'ओडिशा में BJD असली विपक्ष, पटनायक के पास यह साबित करने का सही समय', उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग न करने के फैसले पर कांग्रेस की अपील अदालत का रुख पीठ ने साफ कहा कि वह यह तय करने के पक्ष में है कि क्या हाईकोर्ट में सीधे जाने का विकल्प सिर्फ याचिकाकर्ता की मर्जी पर होगा या इसे अनिवार्य बनाया जाना चाहिए कि पहले सेशंस कोर्ट से ही गुहार लगाई जाए। इस फैसले का असर पूरे देश में अग्रिम जमानत की प्रक्रिया पर पड़ सकता है और यह न्यायिक ढांचे में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला आने वाले समय में अग्रिम जमानत मामलों में नई राह तय करेगा। यदि कोर्ट इसे अनिवार्य कर देता है कि पहले सेशंस कोर्ट जाना होगा, तो न्यायिक संरचना और अधिक स्पष्ट हो जाएगी। वहीं, यदि हाईकोर्ट में सीधे जाने का विकल्प मान्य किया जाता है तो यह विशेष परिस्थितियों में याचिकाकर्ताओं के लिए राहतकारी होगा।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 08, 2025, 16:18 IST
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