कर्मचारियों से अधिकार त्यागने का हलफनामा लेना निंदनीय: हाईकोर्ट

-कोई भी अनुबंध या सेवा शर्त मौलिक अधिकारों से नहीं कर सकता वंचित-बठिंडा औद्योगिक न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ पंचायत समिति की याचिका खारिज---अमर उजाला ब्यूरोचंडीगढ़। कर्मचारियों को सेवा समाप्ति को चुनौती देने के अपने अधिकार को त्यागने के लिए हलफनामा दायर करने के लिए बाध्य करने की प्रथा की निंदा करते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि कोई भी अनुबंध या सेवा शर्त किसी कर्मचारी को सक्षम मंच के समक्ष विवादों का निपटारा कराने के मौलिक अधिकार से वंचित नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि कोई भी कर्मचारी या व्यक्ति जो अपने नियोक्ता राज्य या किसी अन्य वैधानिक प्राधिकरण की कार्रवाई से व्यथित है उसे उचित मंच के समक्ष चुनौती देने का अधिकार है। इसके अलावा किसी निजी व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी शिकायत न्यायालय न्यायाधिकरण या किसी अन्य न्यायिक प्राधिकरण, मंच में भी उठाई जा सकती है। यह सर्वविदित है कि किसी भी पक्ष से अनुबंध के माध्यम से कानूनी निर्णय का अधिकार नहीं छीना जा सकता, बल्कि पक्षकारों की सुविधा के लिए इसे कुछ न्यायालयों के अधीन किया जा सकता है। पंचायत समिति ने बठिंडा औद्योगिक न्यायाधिकरण के उस फैसले के खिलाफ एकल पीठ के फैसले को चुनौती दी थी जिसमें एक संविदा कंप्यूटर ऑपरेटर की बर्खास्तगी को अवैध करार देते हुए उसे 40 प्रतिशत बकाया वेतन के साथ बहाल करने का आदेश दिया गया था।पीठ को बताया गया कि कर्मचारी ने 2 जुलाई, 2012 को सेवा ग्रहण की थी लेकिन उसका काम असंतोषजनक पाए जाने पर 14 जुलाई, 2017 को उसकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। पंचायत समिति ने उसके नियुक्ति पत्र के एक खंड का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि बर्खास्तगी की स्थिति में वह किसी भी अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाएगा। इस तर्क को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि यह शर्त किसी कर्मचारी के कानूनी उपचार के अधिकार को खत्म नहीं कर सकती। पीठ ने समिति की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि वह औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के प्रावधानों के तहत उद्योग की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आती।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Sep 01, 2025, 20:31 IST
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