Panipat News: कुम्हार के चाक को मिली रफ्तार, स्वदेशी दीये करेंगे घरों को जगमग
पानीपत। बाजार में दीयों की चमक बढ़ने लगी है। इस बार एक बार फिर मिट्टी के दीयों का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। जहां कुछ साल पहले प्लास्टिक और बिजली से चलने वाले दीयों ने बाजार पर कब्जा जमा लिया था, वहीं अब लोग फिर से मिट्टी के पारंपरिक दीयों की ओर लौट रहे हैं। पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने की भावना ने कुम्हारों के चाक को फिर से तेज घुमा दिया है।गोहाना रोड स्थित कुम्हारों की बस्ती में इन दिनों खूब रौनक देखने को मिल रही है। कुम्हार परिवार सुबह से रात तक दीयों को आकार देने में जुटे हुए हैं। कुम्हार बलदेव और कृष्ण ने बताया कि उन्हें करीब 30 साल हो गए मिट्टी के बर्तन और दीये बनाते हुए। पहले उनके पूर्वज यह काम करते थे पहले तो बिजली के चाक भी नहीं होते थे। पूरी मेहनत हाथ से करनी पड़ती थी। अब बिजली के चाक ने कुम्हारों का काम थोड़ा आसान कर दिया है। कोरोना काल के बाद लोगों में मिट्टी से बने सामानों के प्रति लगाव तेजी से बढ़ा है। पहले लोग चाइनीज या प्लास्टिक के सामान की ओर ज्यादा आकर्षित थे लेकिन अब बीमारियों और पर्यावरण प्रदूषण के कारण लोगों की सोच बदली है। अब लोग मिट्टी के दीये, कुल्हड़, घड़े और बर्तनों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं।बलदेव ने बताया कि इस बार दीपावली के लिए उन्होंने करीब दो लाख मिट्टी के दीये तैयार किए हैं। ये दीये अलग-अलग आकार और डिजाइन में बनाए जाते हैं। ग्राहकों की मांग के अनुसार फूलनुमा, चौमुखी, रंगीन और विशेष सजावटी दीये तैयार किए जा रहे हैं। इसके अलावा कई ग्राहक थोक ऑर्डर पर दीये बनवाते हैं, जिन्हें तैयार कर शहर के अलग-अलग बाजार में स्टॉलों के माध्यम से बेचा जाता है।मिट्टी की गुणवत्ता जांचना जरूरीमिट्टी के दीये तैयार करने की प्रक्रिया आसान नहीं होती। सबसे पहले मिट्टी की गुणवत्ता की जांच की जाती है। सही मिट्टी मिलने के बाद उसे पानी में गूंथकर तैयार किया जाता है। फिर चाक पर उसे आकार दिया जाता है। आकार देने के बाद दीयों को सुखाया जाता है और फिर भट्टी में पकाया जाता है ताकि वे मजबूत बन सकें। एक दीया तैयार करने में जितनी मेहनत लगती है, उतना ही धैर्य और हुनर भी चाहिए। कृष्ण ने बताया कि मिट्टी के बर्तन बनाना सिर्फ एक काम नहीं, यह एक कला है जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी सीखा जाता है। घर की महिलाएं और बच्चे भी इस काम में हाथ बंटा रहे हैं। कोई रंग भर रहा है, तो कोई पैकिंग में मदद कर रहा है।बुकिंग पर बिक रहे दीयेदुकानों पर इनकी मांग इतनी बढ़ गई है कि कई जगहों पर दीये बुकिंग पर बिक रहे हैं। जब लोग हमारे बनाए दीयों को खरीदते हैं तो दिल से खुशी होती है। ऐसा लगता है कि हमारी पुरानी परंपरा फिर से जीवित हो रही है। सच कहा जाए तो इस बार दीपावली पर मिट्टी के दीयों का उजाला केवल घरों को नहीं, बल्कि देश की परंपरा और पर्यावरण के भविष्य को भी रोशन करेगा।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 15, 2025, 02:50 IST
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