COP30: महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है कॉप-30, बशर्ते औपचारिक वादों से आगे बढ़ें

भीषण गर्मी, बेमौसम बारिश व मौसम के असामान्य रवैये जैसे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों और इन्हें लेकर वैश्विक निष्क्रियता की पृष्ठभूमि में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) का तीसवां सम्मेलन कॉप-30 कल से ब्राजील के बेलेम में शुरू हुआ है, जिसका प्रतीकात्मक महत्व है। दरअसल बेलेम, जो अमेजन वर्षावनों का प्रवेश द्वार होने के साथ ही धरती पर जैव-विविधता के सबसे बड़े भंडारों में से एक है, वनों की अवैध कटाई की वजह से खतरे में है। यह भी उल्लेखनीय है कि दुनिया के विभिन्न देश जलवायु में आ रहे बदलावों की गति को धीमी करने पर चर्चा करने के लिए ब्राजील के उत्तरी शहर में एकत्रित हुए हैं, जबकि यहीं का दक्षिणी राज्य पराना बीते दिनों आए तूफान से हुई क्षति से जूझ रहा है। गौरतलब है कि यूएनएफसीसीसी के सदस्य देशों द्वारा पेरिस समझौते को अपनाए एक दशक बीत चुका है, जो कि एक महत्वपूर्ण वैश्विक समझौता था, जिसके तहत सदस्य देश औसत सतही तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए प्रतिबद्ध हुए थे। हालांकि, वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि जारी है और वादों व व्यवहार के बीच खाई और चौड़ी हो गई है। पिछले दस वर्षों में बाढ़, आंधी-तूफान और चक्रवातों से आई तबाही और 2024 की रिकॉर्ड तोड़ गर्मी से जलवायु परिवर्तन के असर स्पष्ट हैं। कॉप-30 से पहले जारी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की हालिया रिपोर्ट कहती है कि विकासशील देशों को चिलचिलाती गर्मी और घातक तूफानों से बचाने के लिए अब से लेकर 2035 के बीच सालाना 310 अरब डॉलर की जरूरत होगी। ऐसे में, कॉप-30 की सर्वोच्च प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि वह जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सदस्य देशों की प्रगति पर नजर रखने के लिए एक रोडमैप तैयार करे। कॉप-30 के मंच पर सभी देशों को इस बात पर एकमत होना भी जरूरी है कि सामाजिक असमानताएं कुछ लोगों को दूसरों की तुलना में ज्यादा असुरक्षित बनाती हैं। दरअसल, बेलेम सम्मेलन के निष्कर्ष यह निर्धारित करने में मददगार होंगे कि क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब भी उत्सर्जन के वक्र को मोड़ सकता है और क्या भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएं जलवायु परिवर्तन के प्रति सचेत रहते हुए आर्थिक विकास के लिए आवश्यक जगह और समर्थन प्राप्त कर सकती हैं कॉप अंतरराष्ट्रीय जलवायु कूटनीति का केंद्र बिंदु है, जहां तीस से भी ज्यादा वर्षों में, रियो से लेकर क्योटो और पेरिस तक, दुनिया के देश महत्वपूर्ण समझौतों पर सहमत हुए हैं। बेशक पेरिस समझौता जलवायु कार्रवाई को मुख्यधारा में लाया, लेकिन इस समझौते के कार्यान्वयन की राह में मौजूद चुनौतियों और तीव्र जलवायु प्रभावों के मद्देनजर बेलेम सम्मेलन एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 11, 2025, 04:15 IST
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