MSP: एमएसपी की मांग को लेकर फिर जंतर-मंतर पर डटे किसान, क्या फिर होगा बड़ा आंदोलन?
फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की मांग को लेकर किसान एक बार फिर प्रदर्शन करने की राह पर हैं। सोमवार को जंतर-मंतर पर हजारों किसानों ने एकजुट होकर केंद्र सरकार से एमएसपी की मांग की। किसानों का कहना है कि एमएसपी किसानों के लिए मूल अधिकार के समान है जिसके बिना खेती को लाभकारी नहीं बनाया जा सकता। किसानों की मांग है कि केंद्र सरकार उन्हें कर्ज से मुक्ति दे और एमएसपी को कानूनी अधिकार घोषित करे जिससे उन्हें अपनी ही फसलों के लिए सही दाम पाने के लिए बार-बार आंदोलन न करना पड़े। किसानों की महापंचायत में पंजाब से आए सुखविंदर सिंह ने अमर उजाला से कहा कि केंद्र सरकार ने अपने पिछले 10-11 वर्षों के कार्यकाल में देश के बड़े उद्योगपतियों के लाखों करोड़ रुपये के कर्ज माफ कर चुकी है। लेकिन पूरे देश के किसानों का पूरा कर्ज 15 लाख करोड़ रुपये से अधिक नहीं है। ऐसे में केंद्र सरकार को किसानों को एकमुश्त कर्ज से मुक्ति देकर उन्हें जीवित बचे रहने में सहयोग करना चाहिए। हरियाणा के किसान और संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) के सदस्य किशन पाल चौधरी ने अमर उजाला से कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों को किसान सम्मान निधि के रूप में बहुत कम राशि तय की है। इससे छोटे से छोटे किसान को भी अपनी आवश्यकता पूरी करने में मदद नहीं मिलती। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को हर किसान परिवार को हर साल कम से कम 12 हजार रूपये प्रतिवर्ष की सहायता करनी चाहिए। अमेरिका से समझौते होने की चर्चा से डरे हैं किसान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार स्पष्ट कर दिया है कि केंद्र सरकार देश के किसानों के हितों से कोई समझौता नहीं करेगी। वह अमेरिका से मांस खाने वाली गायों के दूध-पनीर के आयात को स्वीकृति नहीं देगी। लेकिन जंतर-मंतर पर जुटे किसानों की बात सुन लगता है कि इस विषय पर किसानों के मन में अभी भी भ्रम बना हुआ है। किसानों ने मांग रखी है कि अमेरिका से कोई समझौता होने की स्थिति में कृषि और डेरी उत्पादों को समझौते से बाहर रखा जाए। किसान नेता मंजीत सिंह ने अमर उजाला से कहा कि अमेरिका का किसान सामान्य किसान नहीं होता। वह किसानी करने वाला बिजनेस मैन होता है। वह लाभ के लिए खेती करता है और अमेरिका की सरकार उसे भरपूर संरक्षण भी देती है। जबकि भारत का 99 फीसदी किसान मूलरूप से अपना परिवार और पेट पालने के लिए खेती करता है। केवल एक फीसदी किसान ऐसे होंगे जो इसे उद्योग की तरह चलाते होंगे। उन्होंने कहा कि ऐसे में सरकार द्वारा अमेरिका से कोई समझौता करते समय कृषि और डेरी उत्पादों को समझौते से बाहर रखना चाहिए। इस विषय में कोई समझौता करने से पहले किसानों से बात करनी चाहिए।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 25, 2025, 16:20 IST
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