संस्कृति के पन्नों से: काल का भय, 'महाकाल' और महाकालेश्वर
काशीपुरी के एक महान ब्राह्मण माण्टि शिव के अनन्य भक्त थे। उन्होंने संतान प्राप्ति की इच्छा से सौ वर्षों तक रुद्र का जाप किया, तो प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कहा, 'माण्टे ! तुम्हें एक पुत्र प्राप्त होगा, जो बहुत बुद्धिमान होगा और तुम्हारे कुल का उद्धार करेगा।' माण्टि की पत्नी ने गर्भ धारण किया, किंतु चार वर्षों तक भी बालक का जन्म नहीं हुआ। चिंतित होकर माण्टि ने गर्भ में पल रहे पुत्र से पूछा, 'बेटा ! तुम इस जन्म को क्यों टाल रहे हो' गर्भस्थ बालक ने कहा, 'पिता जी, मैं मृत्यु से भयभीत हूं। भय मुक्त होने पर ही मैं जन्म लूंगा।' माण्टि ने भगवान शिव से प्रार्थना की, 'प्रभो! आपने पुत्र का वर दिया है, कृपा कर उसका जन्म भी कराइए।' माण्टि का आग्रह सुनकर भगवान शिव ने अपनी विभूतियों को भेजा। वे सब उस गर्भस्थ शिशु से बोले, 'डरो मत, हम तुम्हारे साथ रहेंगे।' यह सुनकर बालक का भय मिट गया और उसने जन्म लिया। जन्म पूर्व मृत्यु से भयभीत होने के कारण उसका नाम कालभीति रखा गया। बड़े होकर कालभीति ने पाशुपत मंत्र की दीक्षा ली और अनेक तीर्थों की यात्रा की। एक दिन वह महीसागर संगम रूपी गुप्त क्षेत्र में पहुंचा। वहां उसने स्नान कर एक करोड़ मंत्रों का जाप किया। जब लौटने लगा, तो उसे एक बिल्व वृक्ष दिखा। वृक्ष के नीचे बैठकर जाप करते-करते वह समाधि में लीन हो गया। दो घड़ी बाद जब चेतना लौटी, तो उसे अद्भुत आनंद का अनुभव हुआ। उसने सोचा, 'यह स्थान तो सबसे श्रेष्ठ है। मैं यहीं रहकर तपस्या करूंगा।' वह वृक्ष के नीचे एक पैर पर खड़ा होकर सौ वर्षों तक जल की एक-एक बूंद पीकर तप करता रहा। सौ वर्ष बाद एक व्यक्ति घड़ा भर जल लेकर उसके सामने आया और बोला, 'महामते! आज आपका नियम पूरा हुआ, यह जल ग्रहण करें।' कालभीति ने पूछा, 'बताओ, तुम किस वर्ण के हो' व्यक्ति बोला, 'मुझे अपने माता-पिता का ज्ञान नहीं, धर्म-अधर्म से मुझे कुछ लेना नहीं।' कालभीति ने कहा, 'मैं तुम्हारा जल नहीं पी सकता।' वह व्यक्ति हंसकर बोला, 'जब सब प्राणियों में शिव ही हैं, तब शुद्ध-अशुद्ध का भेद क्यों यह सब अज्ञानता है।' कालभीति ने तर्क दिया, 'संसार की व्यवस्था मर्यादा पर चलती है। जैसे सोने के आभूषणों में कुछ खरे होते हैं, कुछ खोटे, वैसे ही सबमें शिव हैं, पर शोध के बिना कोई वस्तु ग्रहण करने योग्य नहीं होती। जो व्रत और तप से शुद्ध होता है, वही स्वर्ग को प्राप्त करता है। इसलिए, मैं यह जल ग्रहण नहीं करूंगा।' यह सुनकर वह व्यक्ति भूमि को खोदने लगा। उसने हाथ में पकड़ा जल, उस गड्ढे में उड़ेल दिया, जो तालाब बन गया। कालभीति चुप रहा। फिर वह व्यक्ति अदृश्य हो गया। कालभीति विस्मित रह गया। तभी उसी स्थान पर पृथ्वी से एक तेजोमय शिवलिंग प्रकट हुआ। देवताओं ने पुष्प वर्षा की और आकाश गूंज उठा। कालभीति ने झुककर कहा, 'हे महाकाल ! आप काल के भी काल हैं, सबके ईश्वर हैं। मैं आपकी शरण में हूं।' उसकी स्तुति सुनकर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए और बोले, 'वत्स ! मैं तुम्हारी धर्मनिष्ठा से प्रसन्न हूं। मैं ही उस मनुष्य रूप में तुम्हारी परीक्षा लेने आया था। अब यह शिवलिंग 'महाकाल' के नाम से प्रसिद्ध होगा। जो यहां स्नान, दान या पूजन करेगा, उसे सब तीर्थों का फल मिलेगा।' भगवान ने आगे कहा, 'चतुर्दशी या सोमवार के दिन यहां पूजन करने वाला शिवलोक को प्राप्त होगा। यह स्थान सदा अक्षय फल देने वाला रहेगा। तुम नंदी के साथ मेरे दूसरे द्वारपाल बनोगे। काल पर विजय पाने के कारण तुम 'महाकाल' नाम से विख्यात होगे।' इतना कहकर भगवान शिवलिंग में लीन हो गए। कालभीति ने वहां तपस्या जारी रखी, और वह स्थान सदा के लिए 'महाकालेश्वर' नाम से प्रसिद्ध हो गया।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 16, 2025, 04:46 IST
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