Noida News: पहाड़ों से उतरकर दिल्ली पहुंची रिंगाल
-उत्तराखंड, ओडिशा और गुजरात की शिल्पकला प्रदर्शनी में गंजीफा व कैमल बेल्ट की दिखी चमक-पीएम मोदी ने किया था इसका उद्घाटनराम नरेशनई दिल्ली। पहाड़ी इलाकों में पाई जाने वाली रिंगाल अब दिल्ली में भी अपनी पहचान बना रही है। रिंगाल से बनी लैंप, कुर्सियां, टेबल, टोकरियां, चटाइयां और सजावटी सामान लोगों का ध्यान खींच रही हैं। वहीं, उड़ीसा के पारंपरिक गंजीफा कार्डों पर चित्रित रामायण, महाभारत और दशावतार की झलक भी दर्शकों को खूब लुभा रही है। इसके अलावा, कलाकारों के हाथों से बुनी गई रंग-बिरंगी कैमल बेल्ट भी विशेष रूप से लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की पहल पर लाल किले में आयोजित इस विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आत्मनिर्भर भारत सेंटर फॉर डिजाइन (एबीसीडी) का उद्देश्य लुप्त होती पारंपरिक शिल्पकलाओं को पुनर्जीवित करना और नई पीढ़ी को इन सांस्कृतिक धरोहरों से जोड़ना है। इसके तहत उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान, ओडिशा, तेलंगाना और तमिलनाडु सहित कई राज्यों के कारीगरों को आमंत्रित कर पारंपरिक हस्तशिल्प कलाओं में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस कार्यक्रम का उद्घाटन आठ दिसंबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया।--------200 कारीगरों को मिली शिल्पकला की ट्रेनिंगएबीसीडी निदेशक सुप्रिया कंसल ने बताया कि इस विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत अब तक लगभग 200 कारीगरों को पारंपरिक शिल्पकलाओं का गहन प्रशिक्षण दिया जा चुका है। यह पहल न केवल शिल्पकला के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि इससे जुड़े कारीगरों को आधुनिक डिज़ाइन, तकनीक और बाजार की मांग के अनुरूप तैयार करने का भी प्रयास किया जा रहा है। सुप्रिया कंसल ने बताया कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश के प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे आईआईटी, एनआईडी और अन्य प्रमुख डिजाइनिंग संस्थानों का सहयोग प्राप्त है। इन संस्थानों के विशेषज्ञों द्वारा कारीगरों को व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ डिजाइन थिंकिंग, इनोवेशन और मार्केटिंग जैसी आधुनिक तकनीकों से भी परिचित कराया जाता है। साथ ही इसकी खास बात है कि इसमें कारीगरों को पेशेवर विशेषज्ञों और अनुभवी शिल्पकारों से सीधे सीखने का मौका मिल रहा है। -----30 से लेकर 50 वर्ष की उम्र के कारीगरों में दिखा जोशतीस से लेकर पचास वर्ष की आयु वर्ग के कारीगरों में शिल्पकला के प्रति एक नया जोश देखने को मिला है। यह आयु वर्ग न केवल वर्षों से संचित अनुभव और पारंपरिक हुनर को संजोए हुए है, बल्कि अब वे इस विरासत को नए आयाम देने की दिशा में भी सक्रिय हैं। इन कारीगरों ने पारंपरिक शिल्पकला को नई तकनीकों और आधुनिक डिजाइनों के साथ जोड़ना शुरू कर दिया है। वे न केवल अपने पूर्वजों की शैलियों को संरक्षित कर रहे हैं, बल्कि युवा पीढ़ी को भी सिखा रहे हैं, जिससे यह कला निरंतर आगे बढ़ सके।
- Source: www.amarujala.com
- Published: May 04, 2025, 17:32 IST
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