Siddharthnagar News: बनेगी टेस्टिंग लैब, कालानमक चावल की गुणवत्ता पर नहीं उठेगा सवाल
-कृषि विभाग कार्यालय परिसर में तीन करोड़ से बनाया जाएगा रिसर्च सेंटर -दिल्ली और बनारस की बजाय अब स्थानीय स्तर पर होगी धान पर रिसर्च -मूल प्रजाति और मूल खुशबू वाले धन को दिया जाएगा बढ़ावा श्याम सुंदर तिवारीसिद्धार्थनगर। अब दिल्ली और वाराणसी नहीं, जिले में ही कालानमक धान पर रिसर्च हो सकेगी। इसके लिए कृषि विभाग ने टेस्टिंग लैब बनाने की कवायद शुरू की है। तीन करोड़ की लागत से जांच सेंटर बनाया जाएगा। कृषि विभाग कार्यालय के पीछे जमीन चिह्नित कर ली गई है। कागजी कार्रवाई लगभग पूरी हो चुकी है। बजट आवंटित होते ही लैब बनाने का कार्य शुरू हो जाएगा। इसके अस्तित्व में आने के बाद धान की असली क्वालिटी ही किसानों के पास होगी तो उसका विस्तार होगा। असली प्रजाति होने से गुणवत्ता पर सवाल नहीं उठेगा, किसानों को लाभ मिलेगी। रकबे के आंकड़ों की बात करें तो जिले में 13-15 हजार हेक्टेयर रकबे पर कालानमक धान की खेत का अनुमान है। प्रदेश के तराई क्षेत्र में गिने जाने वाले सिद्धार्थनगर जनपद में कालानमक धान और महात्मा गौतम बुद्ध की क्रीड़ा स्थली के नाम से पहचान होती है। गौतम बुद्ध के नाम के हिसाब से उम्मीद के अनुरूप पर्यटन के क्षेत्र में काम नहीं हुआ। पर एक जनपद एक उत्पाद में कालानमक धान का चयन प्रदेश सरकार की ओर से किए जाने के बाद काम शुरू हुआ। लगातार घट रहे रकबे में बढ़त तो हुई, लेकिन किसानों को बाजार और दाम नहीं मिल पा रहा है। बीच में छोटे और बड़े कद के भेद और चावल की खुशबू और गुणवत्ता पर सवाल खड़ा होने लगा। किसान उत्पादन तो कर रहे हैं, लेकिन लागत के हिसाब से उन्हें भाव नहीं मिल पा रहा है। कुछ लोग उसी चावल की ब्रांडिंग करके मंहगे दाम पर बेच रहे हैं। वहीं, किसान जो लागत खर्च कर चुका है, उसके अनुरूप भी उसे कीमत देने वाले नहीं हैं। इस सबके पीछे चावल की गुणवत्ता की बात आ जाती है। चावल की गुणवत्ता बनी रहे और मूल प्रजाति जो पहले पाई जाती है। जिसमें खुशबू के साथ गुण औ तत्व पाए जाते हैं। उसके लिए अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र वाराणसी और बीज अनुसंधान केंद्र पूसा नई दिल्ली में कई प्रजाति के कालानमक धान पर शोध किया जा रहा है। रिसर्च तत्काल और सुलभ हो इसके लिए जिले में ही दिल्ली और वाराणसी की तर्ज पर टेस्टिंग लैब रिसर्च सेंटर बनाने की कवायद शुरू की गई। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि जब यहां रहेगा तो वैज्ञानिक फसल और जलवायु के हिसाब से उसपर सही से काम कर सकेंगे, जिससे क्वालिटी में दिक्कत न हो। क्योंकि वहां से आने और लेकर जाने में कई प्रकार की दिक्कत होती हैं। इस सेंटर के बनाने के लिए कृषि भवन के पीछे जमीन चिह्नित कर ली गई है। लगभग तीन करोड़ रुपये में लैब तैयार होगी। इसके लिए कागजी कार्रवाई लगभग पूरी हो गई है। बजट आवंटित होते ही इस पर काम शुरू हो जाएगा। इसके बन जाने से बहुत लाभ मिलेगा। (संवाद)---तीन वैज्ञानिक सहित 10 की टीम करेगी पूरे साल कामविभाग के जुड़े जिम्मेदारों के मुताबिक टेस्टिंग लैब में पूरे साल धान, चावल उसकी गुणवत्ता पर जांच होती रहेगी। इसके साथ ही धान में लगने वाले रोग के बारे में भी जांच की जाएगी। क्यों लग रहा है मिट्टी में कमी है या फिर कोई तत्व अधिक है। इसके पीछे वजह क्या है, कैसे समस्या का समाधान होगा। इस पर काम होगा। 10 सदस्यों की टीम इस पर काम करेगी। इसमें तीन कृषि वैज्ञानिक और सात अन्य सहायक के रूप में काम करेंगे। जरूरत पड़ने पर यह टीम खेत तक भी जाएगी।---किसानों का होगा पंजीकरणकृषि विभाग 2500 हेक्टेयर रकबे पर खेती अपनी निगरानी में करवाएगा। इसमें किसानों को अपनी बीज देगा। इसके बाद वह समय-समय पर खेती की निगरानी करेंगे। उत्पादन के बाद चावल की गुणवत्ता को देखेंगे। इसके बाद किसानों के उपज को बाहर से आने वाले खरीदारों को बेचेंगे। इसके किसानों को सीधे तौर पर लाभ मिल सकेगा। कालानमक धान की खेती करने वाले सभी किसानों को पंजीकृत किया जाएगा। समय-समय पर उन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा।---कालानमक भवन बनकर तैयारकालानमक धान के विस्तार और किसानों को सीधे तौर पर जोड़ने के लिए जिससे वे अपनी बात कर सकें। अपनी समस्या के बता सकें। इसके लिए कालानमक बोर्ड का गठन किया गया है। इसमें किसान से लेकर जिला स्तरीय अधिकारी, कृषि विभाग के अधिकारी, कृषि वैज्ञानिक, प्रगतिशील सहित कालानमक की खेती करने वाले अन्य किसान जुड़ें। फिलहाल भवन बनकर तैयार हो चुका है। जल्द ही इसमें बैठक शुरू होने की उम्मीद है।---बोले जिम्मेदारकालानमक धान की प्रजाति गुणवत्ता की जांच के लिए वाराणसी और दिल्ली की तर्ज पर टेस्टिंग लैब बनाने की कवायद शुरू हुई है। भूमि चिह्नित हो गई है। आगे की कागजी प्रक्रिया चल रही है।-मो. मजिम्मिल, जिला कृषि अधिकारी
- Source: www.amarujala.com
- Published: Feb 10, 2025, 23:32 IST
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