जेब खाली, आंखें नम: पिता की मौत के बाद बेटे के पास शव ले जाने के लिए नहीं थे रुपये, सिपाही ने किया ये काम

पिता की मौत का गम आंखों में और खाली जेब के आगे बेटा बेबस। शव को लुधियाना स्थित घर तक ले जाने के लिए बेटे के पास पर्याप्त रुपये नहीं नहीं थे। गरीबी के बोझ ने बेटे को तोड़कर रख दिया लेकिन तभी इंसानियत आगे आई। पुलिस के एक सिपाही ने मदद का हाथ बढ़ाया और अपने खर्चे पर बुजुर्ग का शव घर तक पहुंचवाकर उन्हें अपनों के बीच अंतिम विदाई दिलाई। उम्र के अंतिम पड़ाव में सूरज कुमार (70) पांच साल पहले लुधियाना से दो वक्त की रोटी की तलाश में सितारगंज आए। एक धार्मिक स्थल पर सेवा करने लगे। एक दिन बीमारी ने उन्हें ऐसा घेरा कि फिर उबर नहीं पाए। जिनके साथ रात-दिन काम किया, वह 22 अगस्त को सुशीला तिवारी अस्पताल में भर्ती कराकर चले गए। उसके बाद न कोई खैर खबर ली और न परिवार वालों को सूचना देना जरूरी समझा। 30 अगस्त को सूरज ने अस्पताल में दम तोड़ा तो शव एक दिन मोर्चरी में लावारिस पड़ा रहा। 31 अगस्त को मोर्चरी के कर्मचारी काे उनकी जेब से आधार कार्ड मिला। इसके आधार पर सूरज के बेटे आदित्य से बात हुई। आदित्य पहुंचा तो उसकी जेब में मात्र तीन हजार रुपये थे। लुधियाना शव लेकर जाने के लिए पांच से सात हजार रुपये की जरूरत थी। जब उसे कहीं से कोई मदद नहीं मिली तो सिपाही ललित नाथ ने बाकी रुपये अपनी जेब से डालकर उसे लुधियाना के लिए रवाना किया। पेट संबंधित बीमारी ने ली जान एसटीएच के डाॅक्टरों के अनुसार सूरज को पेट संबंधित बीमारी थी। उसका उपचार चल रहा था। डाॅक्टर और स्टाफ नर्स ही उसकी सेवा कर रही थी। अस्पताल से ही खाना दिया जा रहा था। पुलिस मित्रता, सुरक्षा व सेवा के भाव से काम करती है। मामला मेरे संज्ञान में आया है। सिपाही ने बुजुर्ग के शव को घर पहुंचाकर सेवा का काम किया। हमारी पुलिस न केवल अपराध पर लगाम रखती है बल्कि हर मुसीबत में लोगों के साथ खड़ी है। - प्रह्लाद नारायण मीणा, एसएसपी।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Sep 02, 2025, 11:00 IST
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