तुर्किये-PAK का खेल: आतंकवाद की एक के बाद एक परतें... दोनों देशों से सिरफिरे डॉक्टरों के आतंकी समूह के तार...

भारत चिकित्सा पर्यटन का वैश्विक केंद्र है, जहां 2024 में दुनिया भर से करीब 20 लाख विदेशी इलाज के लिए आए थे। लेकिन तुर्किये से प्रेरित होकर पाकिस्तान भारत को मेडिकल आतंकवाद का केंद्र बनाने की कुत्सित मंशा रखता है। बीते 10 नवंबर को लाल किले के बाहर आत्मघाती कार विस्फोट मुस्लिम चिकित्सा पेशेवरों द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था व इसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए किए जाने वाले आतंकी प्रयासों का एक हिस्सा था। यह वह दिन था, जब चिकित्सा का महान पेशा सिरफिरे डॉक्टरों द्वारा की गई हत्याओं की मशीन बन गया। आखिर ऐसी कौन-सी बात है, जिसने पाकिस्तान और तुर्किये को आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला राष्ट्र बनने और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती उदारवादी अर्थव्यवस्था तथा विकसित देश का दर्जा पाने की ओर अग्रसर भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए प्रेरित किया पाकिस्तान के लिए, भारत को परेशान करना उसकी शपथबद्ध प्रतिबद्धता है, भले ही उसकी पागलपन की सीमा तक शत्रुता ने उसकी अपनी राजनीतिक संरचना को अपूरणीय रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया हो। तुर्किये का रवैया समझ से परे है, क्योंकि भारतीयों में तुर्किये के प्रति बहुत सद्भावना थी, जो लाखों भारतीयों के लिए एक लोकप्रिय पर्यटन गंतव्य था। भारत ने 2023 की शुरुआत में तुर्किये में आए भीषण भूकंप के बाद वहां चिकित्सा और बचाव दल भेजे। लेकिन तुर्किये जैसे मुस्लिम राष्ट्र से कृतज्ञता की उम्मीद करना ही बेकार है। दरअसल, पिछली सदी की शुरुआत से ही तुर्किये ने हमेशा ही गलत फैसले किए हैं। विशाल ओटोमन साम्राज्य या खलीफा के रूप में इसने प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी की ओर से मित्र राष्ट्रों (ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस और रूस) के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। बुरी तरह पराजित होने के कारण ओटोमन साम्राज्य ध्वस्त हो गया। उसने अपने क्षेत्र खो दिए और विघटित हो गया। हालांकि, भारत की उस युद्ध में कोई प्रत्यक्ष महत्वाकांक्षा नहीं थी, फिर भी कुछ भारतीय राजनेताओं ने ओटोमन मुद्दे को मुसलमानों का पक्ष लेने के एक अवसर के रूप में देखा, क्योंकि वे खलीफा को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे, और इसलिए उन्होंने 1919-1924 तक खिलाफत आंदोलन शुरू किया। खिलाफत तो खत्म हो गई, लेकिन तुर्किये में बच्चों को अब भी पढ़ाया जाता है कि कैसे पाकिस्तानियों ने ओटोमन का समर्थन किया। कोई बच्चों को यह नहीं बताता कि तब पाकिस्तान का अस्तित्व भी नहीं था। काफी हद तक यह इस्लामी पाकिस्तान के प्रति तुर्किये के नरम रुख को स्पष्ट करता है। पाकिस्तान के एक पूर्व प्रधानमंत्री (जो क्रिकेटर भी थे) ने तो पाकिस्तान के राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर तुर्की धारावाहिकों को अनिवार्य कर दिया था और यह घोषणा की कि पाकिस्तानी मूल के लोग तुर्की हैं, और वे पाकिस्तानी स्कूलों में तुर्की भाषा को अनिवार्य करने पर भी विचार कर रहे हैं। तुर्किये के लोगों को यह चाटुकारिता काफी पसंद आई। तुर्किये के वर्तमान कट्टर इस्लामवादी राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन, जिन्होंने अपने देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को ध्वस्त कर दिया है, संयुक्त राष्ट्र महासभा की हर बैठक में कश्मीर का मुद्दा उठाते हैं। तुर्किये उन पहले देशों में से एक था, जिसने अत्यधिक परिष्कृत सशस्त्र ड्रोन विकसित किए और उन्हें पाकिस्तान को बेचा। पाकिस्तान ने उनका इस्तेमाल तुर्किये के सलाहकारों की मदद से भारत के खिलाफ किया, जब भारत ने मई, 2025 में पाकिस्तानी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को नष्ट कर दिया। पाकिस्तानी सेना के खिलाफ जवाबी कार्रवाई में एक प्रमुख पाकिस्तानी हवाई अड्डे पर कई तुर्किये 'सलाहकार' मारे गए। अंकारा ने बाद में बताया कि इराक की एक गुफा में आतंकवादियों की तलाश करते हुए तुर्किये के एक दर्जन सैनिक मारे गए। तुर्किये के वर्तमान इस्लामवादी राष्ट्रपति इस्लामी दुनिया के नए खलीफा बनना चाहते हैं। उनके सामने राजनीतिक, आतंकी, आर्थिक और बेरोजगारी की गंभीर चुनौतियां हैं। 2016 में अमेरिका में निर्वासित मौलवी फतेउल्लाह गुलेन के अनुयायियों द्वारा किए गए तख्तापलट के प्रयास में वह बाल-बाल बच गए थे। इस विफल तख्तापलट के बाद सरकार ने बड़े पैमाने पर दमनकारी कार्रवाई की, जिसमें हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया या उन्हें नौकरियों से बर्खास्त कर दिया गया और गुलेन से जुड़े संस्थानों को बंद या जब्त कर लिया गया। दिवंगत गुलेन ने एर्दोगन पर पर्याप्त रूप से इस्लामी न होने का आरोप लगाया था, और इसलिए एर्दोगन अपनी इस्लामी साख चमकाने के हर मौके का फायदा उठाते हैं। एर्दोगन वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार से इसलिए नाराज हैं कि उसने भारतीय नौसेना के लिए पांच बेड़े सहायक जहाजों के निर्माण के लिए दो अरब डॉलर के आकर्षक नौसैनिक अनुबंध को रद्द कर दिया, जो तुर्किये के लिए एक बड़ा झटका है। मानो यही काफी नहीं था, मई 2025 में तुर्किये की कंपनी सेलेबी, जो भारत के नौ प्रमुख हवाई अड्डों पर अधिकांश सेवाएं संभालती है, ने ऑपरेशन सिंदूर पर पाकिस्तान को तुर्किये के समर्थन के बाद अपनी सुरक्षा मंजूरी खो दी। लाल किला विस्फोट के बाद, जांचकर्ताओं ने पाया है कि कई भारतीय डॉक्टरों के समूह डॉक्टर्स फॉर टेरर का मुख्य संचालक (कोड नाम अकासा) तुर्किये में था, जो संभवतः एक पाकिस्तानी नागरिक था। वह दिल्ली स्थित मॉड्यूल और प्रतिबंधित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और अंसार गजवत-उल-हिंद के संचालकों के बीच प्राथमिक कड़ी भी था। डॉक्टर्स फॉर टेरर मॉड्यूल के कुछ सरगना संभवतः भारत में बड़े पैमाने पर आतंकी हमले की साजिश रचने के लिए 2022 में तुर्किये गए थे। भारतीय एजेंसियां योजनाबद्ध हमले में तुर्किये की संलिप्तता के पुख्ता सबूत जुटा रही हैं। इस बीच, कई देशों ने 10 नवंबर के आतंकवादी हमले की निंदा की है। जाहिर है, भारत की कुशल कूटनीति पहले से ही काम कर रही है। जांचकर्ताओं ने पाया कि तुर्किये व जर्मनी से प्राप्त धन का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश और पंजाब में मदरसों तथा मस्जिदों के लिए जमीन खरीदने में किया गया था। पाकिस्तान को उम्मीद है कि अगर उसकी आतंकी गतिविधियों का यूरोपीय संघ और नाटो द्वारा खुलासा किया जाता है, तो नाटो सदस्य तुर्किये उसका बचाव करेगा। एर्दोगन को जल्द ही एहसास हो जाएगा कि पाकिस्तान को बढ़ावा देकर वह एक बड़ी गलती कर रहे हैं। दुनिया में उसके ज्यादा दोस्त नहीं हैं।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 19, 2025, 05:31 IST
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