बिहार चुनाव: महिलाओं ने खेल बदल दिया, वोटों से जड़ा नहले पर दहला
बिहार विधानसभा के जो चुनावी नतीजे आए, हाल के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसे दिलचस्प नतीजे शायद ही किसी राज्य के रहे होंगे। मीडिया में और एग्जिट पोल में ऐसी बातें की जा रही थीं कि राजग आगे तो है, लेकिन लड़ाई कांटे की टक्कर की है। विश्लेषकों का यह भी मानना था कि तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में सबसे पसंदीदा चेहरा हैं। साथ ही, बेरोजगारी के मुद्दे पर तेजस्वी ने बिहार के मतदाताओं से यह वादा किया कि वह हर घर में एक पक्की सरकारी नौकरी देंगे। इन सबके बावजूद, राजद और महागठबंधन की सीटें 243 की संख्या वाली विधानसभा में 50 के आंकड़े को भी नहीं छू पाईं। दूसरी ओर, विपक्ष द्वारा नीतीश कुमार को पलटू राम (बार-बार दलबदलू) कहने के बावजूद, मतदाताओं ने गठबंधन बदलने के बजाय सड़क, बिजली, स्कूल, सुरक्षा और महिला-केंद्रित योजनाओं के उनके रिकॉर्ड को प्राथमिकता दी। विगत विधानसभा में महागठबंधन के पास 110 सीटंे थीं, लेकिन इस बार उसके आधे से भी कम सीटें आना राजद व उसके घटक दलों के लिए बहुत ही निराशाजनक है। राजग की जीत के कारणों की ओर यदि नजर डालें, तो यह स्पष्ट दिखता है कि राजग के सभी घटक दलों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। भाजपा और जद (यू) ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा और दोनों का ही स्ट्राइक रेट बहुत अच्छा रहा है। अस्सी फीसदी से ज्यादा सीटें दोनों दलों ने मिलकर जीती हैं। इसके अलावा, चिराग पासवान की पार्टी और हम का प्रदर्शन भी सराहनीय रहा है। यानी राजग गठबंधन के दलों ने अपना-अपना प्रदर्शन बखूबी किया है। चुनाव परिणाम से जाहिर होता है कि इन पार्टियों ने पूरे तालमेल के साथ यह चुनाव लड़ा है। हालांकि, ऊपर से ऐसा दिख नहीं रहा था। चुनाव के दौरान नीतीश कुमार, प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह साझा रैलियां करते हुए भी नहीं देखे गए। जिस सभा में राजग का मैनिफेस्टो जारी किया गया, वह बहुत बड़ी नहीं थी और न ही उसमें ज्यादा कुछ बोला गया। इन सबके बावजूद इन परिणामों से यह साबित होता है कि बिहार के मतदाताओं ने इन सभी बातों को दरकिनार करते हुए अपना पूरा भरोसा राजग गठबंधन पर जताया है। चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन के दलों ने मिलकर वोटर अधिकार यात्रा निकाली, खासकर कांग्रेस पार्टी और उसके नेता राहुल गांधी इस यात्रा के नायक बने। एक महीने से कुछ कम अवधि तक चलने वाली इस रैली में एसआईआर और वोट चोरी प्रमुख मुद्दे बने रहे। वोटरों को यह तो समझ में आया कि वोट उनका अधिकार है और यदि वे मतदाता सूची को लेकर सचेत नहीं रहे, तो उनका नाम सूची से कट भी सकता है। लेकिन यह डर भाजपा या नीतीश कुमार के विरोध का कारण नहीं बन सका। ऐसे में, राजग ने भांप लिया कि उनके खिलाफ कोई सत्ता-विरोधी लहर नहीं है। चुनाव के दौरान उन्होंने कई तरह की चुनावी रणनीतियों को अपनाया। सबसे पहला तो यह कि भाजपा ने मगध-शाहाबाद क्षेत्र में कई नए और पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों को प्रत्याशी बनाया। इनमें प्रमुख रहे-राजवंशी, कुशवाहा और यादव। इससे भाजपा को पिछड़ों के बीच पैठ बनाने में मदद मिली। इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि जिस भाजपा को अभी तक केवल ब्राह्मण-बनिया पार्टी या अगड़ी जातियों की पार्टी समझा जाता था, उस सोच में बदलाव आया और पिछड़ों के वोट को जुटाने में यह मददगार साबित हुआ। और इस इलाके में हाशिये पर रह रहे वर्गों में भी चिराग पासवान, हम पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की मदद से भाजपा ने अपनी दावेदारी मजबूत की। लेकिन नहले पर दहला तो महिला वोटों ने जड़ा। इस चुनाव में महिलाओं का मतदान पुरुषों से ज्यादा रहा। इस साल बिहार में कुल मिलाकर रिकॉर्ड 67.13 फीसदी मतदान हुआ, लेकिन अकेले महिलाओं का मतदान 71.78 प्रतिशत रहा, जो पुरुषों के 62.98 फीसदी मतदान से कहीं अधिक है। शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, महिला मतदाताओं की तादाद पुरुषों से करीब सवा चार लाख से भी ज्यादा रही। महिलाएं अब बड़ी संख्या में जीविका दीदी, रसोईया दीदी का काम बिहार में करती हैं। नीतीश की सरकार में पंचायत में भी महिलाओं को पर्याप्त आरक्षण दिया गया है। और हाल के वर्षों में राज्य में महिला पुलिसकर्मियों की भर्ती भी बड़ी तादाद में हुई है। महिलाओं के अटूट समर्थन ने नीतीश के शासन को महिलाओं के लिए कल्याणकारी नीतियां अपनाने के लिए प्रेरित किया। चुनाव की पूर्व संध्या पर राजग गठबंधन ने यह भांप लिया कि यही वह वर्ग (महिला) है, जो उनका बेड़ा पार लगा सकता है, वरना स्थानीय मुद्दों पर चुनाव उलझकर रह जाएगा। ऐसे में, दस हजार रुपये की एकमुश्त राशि महिलाओं के खाते में भेजना एक मजबूत चुनावी हथकंडा बना। इससे महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के पक्ष में एक जबर्दस्त माहौल बना। नतीजतन बिहार का चुनाव, जो कभी जात-पात या विभिन्न स्थानीय मुद्दों तक ही सीमित रहता था, वह एक बड़े परिदृश्य पर उभरा और चुनावी चेतना का केंद्र महिलाएं रहीं। महिलाओं ने यह बताया कि दस हजार रुपये का इस्तेमाल वह खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए करेंगी। महिलाओं के दिल में यह भावना भी थी कि नीतीश कुमार की सरकार उनकी पक्षधर है। इन्हीं वजहों से राजग के पक्ष में एक जोरदार लहर चली और उसकी चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत हुई। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि तेजस्वी यादव और राहुल गांधी इस हार से क्या सबक सीखते हैं। मतदाताओं के बीच मतदाता अधिकार यात्रा की याद अब पुरानी हो चली है। राजनीति में पुरानी बातों पर लटककर जनचेतना टिकी नहीं रहती। बिहार के नागरिक चिंतनशील और विवेकपूर्ण मतदाता हैं। बिहार की महिलाओं ने दर्शाया कि वे आने वाले दिनों में अपने राज्य में राजनीति का ताना-बाना कैसे बुनना चाहती हैं, उन्हें किस तरह की सरकार चाहिए व वे किन नेताओं पर भरोसा करती हैं। स्पष्ट है कि नीतीश कुमार की महिलाओं को लेकर कल्याणकारी योजनाओं पर महिला मतदाताओं ने सौ फीसदी भरोसा और समर्थन जताया है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 15, 2025, 04:38 IST
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