BHU: जल पर टिकी है धर्म, अर्थ, कर्म की इमारत, तालाब-नदियां लुप्त हुईं तो आस्था-मानवता कुछ न बचेगी

बीएचयू के वैदिक विज्ञान केंद्र में शनिवार को विश्व संस्कृति में जल संरक्षण की थीम पर राष्ट्रीय संगोष्ठी और पुरातन छात्र सम्मेलन हुआ। विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति दी कि धर्म, अर्थ और कर्म की पूरी इमारत जल पर ही टिकी है। बिना जल और नदी के न पूजा-पाठ पूरा होगा और न ही खेती-व्यापार। जबकि गंगा तो काशी की आत्मा ही हैं। छठ, देव दीपावली और स्नान-ध्यान गंगा किनारे ही होते हैं। कार्यक्रम के दौरान संगोष्ठी से संबंधित स्मारिका का विमोचन भी किया गया। इसमें देशभर से आए विद्वानों और शोधार्थियों के शोध सारांश संकलित हैं, जो जल संरक्षण के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक तथ्यों को बताते हैं। इतिहास विभाग की ओर से हुए कार्यक्रम के मुख्य वक्ता और केंद्रीय विश्वविद्यालय, झारखंड के कुलपति प्रो. जय प्रकाश लाल ने कहा कि जल संरक्षण का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव सभ्यता का उदय। मिस्र, रोम, मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी जैसी सभी महान सभ्यताएं नदियों और जल स्रोतों के तट पर विकसित हुईं। जल केवल जीवन का आधार नहीं, बल्कि संस्कृति और विकास का मूल प्रेरक रहा है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 08, 2025, 22:11 IST
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