भारत-बांग्लादेश सीमा: हौसलों के आगे पहाड़ सी कठिनाइयों पड़ीं छोटीं, हर चुनौती का जवाब देने को तैयार महिला जवान
भारत-बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा है असम का धुबुरी जिला। पड़ोसी देश में हलचल बढ़ने के बाद से भारत-बांग्लादेश के साथ लगती अन्य सीमाओं की तरह ही धुबुरी सीमा पर सुरक्षा के इंतजाम और भी कड़े कर दिए गए हैं। नदी और दलदली इलाकों से घिरी इस सरहद की निगरानी सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान दिन-रात कर रहे हैं। खास बात यह है कि इस चौकसी में महिला जवान भी कंधे से कंधा मिलाकर ड्यूटी पर तैनात हैं। चाहे वह ब्रह्मपुत्र नदी की उफनाती धाराओं पर मोटर बोट से तस्करों को पकड़ना हो या फिर कंटीली तारों के उस पार के हमलावरों से निपटना हो। साइकिल और पैदल पेट्रोलिंग कर हर जगह मुस्तैद रहती हैं बीएसएफ की महिला जवान। भले ही इस इलाके की चुनौतियां पहाड़ से भी ऊंचे हों, लेकिन हमारे जवानों के हौसले और जज्बे उससे भी ऊपर हैं। धुबुरी सीमा का हाल, ज्यादा पानी, कम बाड़ असम के धुबरी जिले की भारत–बांग्लादेश सीमा की कुल लंबाई लगभग 134 किलोमीटर है। इसमें से करीब 45 किलोमीटर हिस्सा स्थलीय (लैंड बॉर्डर) है, जहां बाड़ लगाई गई है। बाकी लगभग 89 किलोमीटर हिस्सा नदी आधारित (रिवर बॉर्डर) है, जो ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के बीच से गुजरता है। यही नदी वाला इलाका सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, जहां बीएसएफ को फ्लोटिंग बॉर्डर आउटपोस्ट (बीओपी) और मोटरबोट पेट्रोलिंग के ज़रिए चौकसी रखनी पड़ती है। बड़ी चुनौती, जब नदी ही बन जाती है सीमा असम का धुबुरी जिला भारत–बांग्लादेश सीमा पर सबसे कठिन इलाकों में गिना जाता है। यहाँ ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियां ही प्राकृतिक सीमा हैं। यही जलधारा बार-बार अपना रास्ता बदलती है, जिससे सीमा की पहचान और निगरानी मुश्किल हो जाती है। बीएसएफ को नावों से गश्त करनी पड़ती है, क्योंकि बाड़ लगाना संभव नहीं। नदी के रास्ते अवैध घुसपैठ, पशु व मादक पदार्थ तस्करी और स्थानीय आबादी की सांस्कृतिक समानता सुरक्षा को और चुनौतीपूर्ण बनाती है। फिर भी, बीएसएफ की फ्लोटिंग पोस्ट और रिवर पेट्रोलिंग यूनिट लगातार चौकसी में जुटी हैं, ताकि बहती सीमा पर भी देश की सुरक्षा की दीवार अडिग बनी रहे। बेटियों को फौज में आना चाहिए तेलंगाना की रहने वाली कल्याणी कहती हैं, फौज में आना पसंद था। सीमा पर खड़े होकर देश के लिए कुछ करने ता जज्बा था। इसलिए बीएसएफ को चुना। वहीं फाल्गुनी बोलीं- बचपन का सपना पूरा हो गया। बबिता प्रमाणिक कहती हैं कोई दबाव नहीं था। पश्चिम बंगाल की रहने वाली बबिता बोलीं, मेरा बचपन का सपना था फौज को जॉइन करूं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 26, 2025, 04:55 IST
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