Delhi: NCR की मिट्टी को मिली संजीवनी, वैज्ञानिक उपाय अपनाने से भू-क्षरण रोकने और भूजल स्तर बढ़ाने में सफलता
शहरीकरण और प्रदूषण के दबाव में लगातार बिगड़ रही दिल्ली-एनसीआर की मिट्टी को वैज्ञानिक तकनीकों से संजीवनी मिल रही है।आईसीएआर-इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ सॉइल एंड वॉटर कंजर्वेशन (आईआईएसडब्ल्यूसी) की रिपोर्ट बताती है कि अरावली हिल्स से लेकर यमुना बेसिन तक लागू किए गए संरक्षण प्रोजेक्ट्स से मिट्टी का कटाव 40 प्रतिशत तक घटा है और भूजल स्तर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मॉडल यदि बड़े पैमाने पर अपनाया जाए तो एनसीआर की जमीन और पानी दोनों की सेहत में स्थायी सुधार संभव है। रिपोर्ट के अनुसार गुरुग्राम, फरीदाबाद और दक्षिण दिल्ली के अरावली क्षेत्र में तेजी से फैलते शहरीकरण और खनन गतिविधियों ने मिट्टी क्षरण की स्थिति गंभीर कर दी थी। आईआईएसडब्ल्यूसी ने यहां अरावली हिल्स मृदा संरक्षण प्रोजेक्ट के तहत कंटूर ट्रेंचेस, गली प्लगिंग और ग्रास टर्फिंग जैसी तकनीकें अपनाईं। परिणामस्वरूप मिट्टी का कटाव 40 से 45% तक घटा और स्थानीय स्तर पर वर्षा जल पुनर्भरण में सुधार दर्ज किया गया। यह प्रोजेक्ट अरावली को स्थिर करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ। रेनवॉटर हार्वेस्टिंग छोटे चेक डैम और बायो-इंजीनियरिंग मॉडल लागू किए दिल्ली और नोएडा के यमुना किनारे अतिक्रमण और अपशिष्ट ने भूमि और जल गुणवत्ता दोनों को प्रभावित किया। आईआईएसडब्ल्यूसी ने यहां रेनवॉटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर, छोटे चेक डैम और बायो-इंजीनियरिंग मॉडल लागू किए। अध्ययन में पाया गया कि भूजल स्तर में 0.6 से 0.9 मीटर तक सुधार आया और यमुना की बाढ़भूमि में मिट्टी की नमी बनी रही। घास और झाड़ी आधारित पौधारोपण से मिट्टी में लेड की मात्रा 25 से 30% कम द्वारका, एनएच-48 कॉरिडोर और नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे के किनारे बढ़ते प्रदूषण ने जमीन की गुणवत्ता पर असर डाला। इसे सुधारने के लिए आईआईएसडब्ल्यूसी ने स्थानीय घास और झाड़ी आधारित पौधारोपण और फाइटो-रिमेडिएशन तकनीक अपनाई। परिणामस्वरूप, प्रदूषित मिट्टी में जिंक और लेड की मात्रा 25 से 30% तक कम हुई। मिट्टी की जल धारण क्षमता में औसतन 15 फीसदी तक सुधार गुरुग्राम, ग्रेटर नोएडा और दिल्ली के द्वारका क्षेत्र में तेजी से हुए कंक्रीटीकरण ने भूजल रिचार्ज को प्रभावित किया। यहां आईआईएसडब्ल्यूसी ने परकोलेशन टैंक, ड्यूल परपज रेनवॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और आर्टिफिशियल रीचार्ज वेल्स लगाए। नतीजे बताते हैं कि वर्षा जल का 22 से 28% तक पुनर्भरण संभव हुआ और मिट्टी की जल धारण क्षमता में औसतन 15% सुधार हुआ। शहरी इलाकों में भी मृदा संरक्षण संभव आईआईएसडब्ल्यूसी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वी.के. शर्मा का कहना है,दिल्ली-एनसीआर में शहरीकरण की रफ्तार मिट्टी की सेहत को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रही है। यदि इन संरक्षण तकनीकों को समय रहते बड़े पैमाने पर नहीं अपनाया गया तो आने वाले 10 वर्षों में यानी 2035 तक एनसीआर का बड़ा हिस्सा माडरेटली से लेकर सीवियरली डिग्रेडेड कैटेगरी में आ जाएगा। सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण कहती हैं कि यह रिपोर्ट यह दिखाती है कि शहरी इलाकों में भी मृदा संरक्षण संभव है। लेकिन इसके लिए हमें भूमि उपयोग नीतियों में पारदर्शिता, प्रदूषण नियंत्रण पर सख्ती और हरित पट्टियों के विस्तार को प्राथमिकता देनी होगी। औरसुधार संभव आईआईएसडब्ल्यूसी की शोध परियोजनाएं यह स्पष्ट करती हैं कि दिल्ली-एनसीआर की मिट्टी की समस्या केवल ग्रामीण क्षेत्रों की नहीं, शहरी विस्तार से जुड़ा हुआ बड़ा संकट है। अरावली हिल्स को स्थिर रखने,यमुना बेसिन की भूमि और भूजल बचाने और एनसीआर के शहरी जलग्रहण क्षेत्रों में पुनर्भरण बढ़ाने में वैज्ञानिक तकनीकें अत्यंत प्रभावी रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इन मॉडलों को बड़े पैमाने पर अपनाया जाए तो निश्चित रूप से दिल्ली-एनसीआर की मिट्टी और जल दोनों की सेहत में और अधिक उल्लेखनीय सुधार संभव है। आईआईएसडब्ल्यूसी के प्रयोग दिखाते हैं कि तकनीकी हस्तक्षेप से 15 से 30% सुधार संभव है, लेकिन इसे टिकाऊ बनाने के लिए स्थानीय निकायों और समुदायों की सक्रिय भागीदारी जरूरी है। - प्रो. संजय राणा, पर्यावरण विज्ञानी, दिल्ली विश्वविद्यालय
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 06, 2025, 06:32 IST
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