Indore Shakti Sthal: आस्था और देवी मंदिरों का केंद्र है गीता भवन, यहां विराजित मां हर लेती हैं भक्तों के दुख
इंदौर के गीता भवन का नाम लेते ही भगवान श्री कृष्ण का स्वतः ही स्मरण हो जाता है। किसी समय इंदौर की नगर सीमा से दूर रहे स्थान जहां वर्तमान में गीता भवन है, उसकी स्थापना 1957 में हुई थी। यूं तो गीता भवन में भगवान कृष्ण के नाम का बोध होता है, परंतु गीता भवन इंदौर का ऐसा धर्म स्थल है, जहां पर कई देवी देवताओं की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। किसने की स्थापना गीता भवन की स्थापना बाबा बालमुकुंद कोहली ने की। उनका जन्म 1885 में पेशावर पाकिस्तान में हुआ था, उनके पिता का नाम श्यामदास कोहली था। वे व्यापारी थे। इंदौर आने के बाद कुछ समय उन्होंने स्वयं का व्यवसाय किया। धार्मिक आस्था के कारण उन्होंने सब छोड़कर आध्यात्म की राह पर चलने का निर्णय लिया। वर्तमान गीता भवन परिसर की 50 वर्ग फीट जगह उन्होंने उस दौर में क्रय की और उस स्थान पर 1957 में मध्य प्रदेश का पहला गीता भवन मंदिर स्थापित किया। अष्टभुजा दुर्गा भवानी मंदिर गीता भवन मंदिर परिसर में 1958-59 के करीब अष्टभुजा दुर्गा मंदिर का निर्माण किया गया था। आरंभ में बहुत छोटी देवी प्रतिमा पूजन के लिए इस स्थान पर थी। 90 के दशक में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया और संगमरमर की बेहतरीन नक्काशी वाली भव्य मूर्ति स्थापित की गई। सिंह पर सवार दुर्गा की यह प्रतिमा बहुत ही आकर्षक है। मंदिर की व्यवस्था का कार्य गीता भवन ट्रस्ट द्वारा नियुक्त पुजारी करते हैं। मां दुर्गा भवानी प्रत्येक कष्टधारक के दुखों का हरण करती हैं। मंदिर के समीप ही स्थित अस्पताल में मरीज को इलाज के लिए लेकर आते हैं। उस वक्त उनके परिजन माता से जल्दी स्वस्थ होने की मन्नतें मांगते हैं, जो पूर्ण होती हैं। मंदिर परिसर में महालक्ष्मी, मां अन्नपूर्णा, मां गायत्री, मां सरस्वती, मां कालिका की सुंदर प्रतिमाएं विराजित हैं, जिनका भव्य स्वरूप दर्शनीय है। देवी के भक्तों की ऐसी मान्यता है कि अष्टभुजा धारी दुर्गा भवानी के स्मरण मात्र से ही मां भक्तों के हर दुखों को हर लेती हैं और सब शुभ कार्य सिद्ध करती हैं। इसी कारण इस मंदिर में प्रत्येक दिन भक्त पूजा-अर्चना स्तुति करने आते हैं। यह भी पढ़ें- एमपी में आधी रात में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल, 18 IAS और 8 SAS अफसरों के तबादले कौन करता है संचालन बाबा बालमुकुंद द्वारा स्थापित गीता भवन का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है, जो अस्पताल, 40 से अधिक मंदिर, संतों की समाधि और धर्मशाला का संचालन करता है। प्रतिवर्ष यहां पर गीता जयंती के अवसर पर भव्य महोत्सव आयोजित होता है। गीता जयंती महोत्सव पिछले 67 वर्षों से लगातार आयोजित हो रहा हैं। गीता भवन की स्थापना के बाद बाबा बालमुकुंद ने 1982 तक इसका संचालन किया। बाबा बालमुकुंद का 1982 में निधन हो गया था, इसके बाद मंदिर का संचालन एनएम व्यास और उनके बाद नगर के कई प्रतिष्ठित लोगों ने किया। बाबा बालमुकुंद द्वारा स्थापित परंपराओं के पूर्ण पालन कर उसी तरह से गीता भवन का संचालन आज तक जारी है। नवरात्र में विशेष पूजन अष्टभुजा धारी मां दुर्गा के अलावा अन्य देवियों का नियमित पूजन होता और शृंगार होता है। मंदिर में प्रतिदिन पूजन पाठ विधि विधान से संपन्न होता है। देवी मंदिर की सुबह और संध्या को आरती होती है। यूं तो गीताभवन में नियमित दर्शन करने भक्तगण आते हैं, जो सभी देवी देवताओं को शीश नवाते हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 28, 2025, 08:33 IST
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