Hamirpur (Himachal) News: परंपरा, सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है सुजानपुर का होली उत्सव
नर्वदेश्वर मंदिर की दीवारों पर कांगड़ा कलम के मनोहारी चित्र हैं इसके साक्षीकटोच वंश के महाराजा संसार चंद की राजधानी रहे सुजानपुर कस्बे में आज भी दिखती होली की प्राचीन परंपराओं छापसंवाद न्यूज एजेंसीहमीरपुर। बसंत के आगमन के साथ ही फाल्गुन माह में मनाया जाने वाला रंगों का उत्सव होली प्रकृति के साथ-साथ हमारे जीवन में भी एक नई उमंग, उत्साह और तरंग लेकर आता है। इस रंग-बिरंगी होली की यह परंपरा दशकों या सदियों से नहीं, बल्कि युगों-युगों से चली आ रही है। इस परंपरा एवं हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का सबसे बड़ा प्रतीक है हमीरपुर जिले की ऐतिहासिक नगरी सुजानपुर का राष्ट्र स्तरीय होली उत्सव। कभी कटोच वंश के महाराजा संसार चंद की राजधानी रहे सुजानपुर कस्बे में आज भी होली की प्राचीन परंपराओं की एक गहरी एवं अमिट छाप देखने को मिलती है। हर वर्ष फाल्गुन में यहां के प्राचीन मंदिरों एवं धरोहरों, विशाल चौगान, गलियों और चौराहों में होली के अद्भुत रंगों के दीदार होते हैं।सुजानपुर टीहरा जिला हमीरपुर का सबसे सुंदर एवं आकर्षक स्थल है। इस नगर की स्थापना का कार्य लगभग 1761 ईस्वी में कटोच वंश के राजा घमंड चंद ने शुरू किया था। मगर इसे पूर्ण करने और इसे उस समय की बहुत वैभवशाली नगरी बनाने का श्रेय राजा घमंड चंद के पोते महाराजा संसार चंद को ही जाता है। वर्ष 1775 ईस्वी से 1823 ईस्वी तक के अपने शासनकाल के दौरान महाराजा संसार चंद ने सुजानपुर टीहरा में अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। वह बहुत ही कलाप्रेमी और प्रतापी राजा थे। कांगड़ा चित्रकला शैली भी उनके शासनकाल में काफी फली-फूली। सुजानपुर के सुंदर मंदिरों विशेषकर नर्वदेश्वर मंदिर की दीवारों पर कांगड़ा कलम के बहुत ही मनोहारी चित्र इसके साक्षी हैंं। सुजानपुर के चौगान में ही प्रतिवर्ष होली उत्सव बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मैदान के एक कोने पर महाराजा संसार चंद ने वर्ष 1785 में शिखर शैली में मुरली मनोहर मंदिर का निर्माण करवाया था। इसी मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद महाराजा संसार चंद अपनी प्रजा के साथ होली मनाते थे। उन्होंने होली के रंगीन पर्व को विश्व प्रसिद्ध ब्रज की होली की भांति लोकोत्सव का स्वरूप प्रदान किया था, जिसकी परंपरा आज भी कायम है। पहले यह मेला तीन दिन का होता था, लेकिन राष्ट्र स्तरीय महोत्सव का दर्जा मिलने के बाद अब यह मेला चार दिन तक आयोजित किया जाता है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Mar 11, 2025, 19:46 IST
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