उत्तराखंड हाईकोर्ट का फैसला: ONGC में ठेका श्रमिकों की नियुक्ति पर रोक संबंधी केंद्र सरकार की अधिसूचना रद्द

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) में ठेका श्रमिकों की नियुक्ति पर रोक लगाने वाली केंद्र सरकार की 8 सितंबर 1994 की अधिसूचना को निरस्त कर दिया है। न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने 31 वर्ष पुरानी इस अधिसूचना को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसे कॉन्ट्रैक्ट लेबर (रेगुलेशन एंड एबोलीशन) एक्ट, 1970 की धारा 10 के प्रावधानों का पालन किए बिना जारी किया गया था। ओएनजीसी ने केंद्र सरकार की 1994 की अधिसूचना को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस अधिसूचना में ओएनजीसी की 13 श्रेणियों के कार्यों में ठेका श्रमिकों की नियुक्ति पर प्रतिबंध लगाया गया था। बाद में श्रम प्रवर्तन अधिकारी (केंद्रीय) ने ओएनजीसी के खिलाफ सीजेएम देहरादून की अदालत में शिकायत दर्ज की थी कि अधिसूचना के बावजूद ठेका श्रमिकों को काम पर रखा जा रहा है। ओएनजीसी की ओर से कहा गया कि अधिसूचना जारी करने से पहले केंद्र सरकार ने धारा 10(2) के तहत केंद्रीय सलाहकार अनुबंध श्रम बोर्ड से कोई परामर्श नहीं किया। केवल एक उप समिति की रिपोर्ट के आधार पर अधिसूचना जारी कर दी गई, जबकि उप समिति ने देशभर में ओएनजीसी की 34 इकाइयों में से केवल 4 का निरीक्षण किया था। कहा कि उप समिति की रिपोर्ट को कभी भी केंद्रीय सलाहकार बोर्ड ने मंजूरी नहीं दी थी, इसलिए यह प्रक्रिया का उल्लंघन है। केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि अधिसूचना विधि अनुसार परामर्श के बाद जारी की गई थी और इसे 30 वर्षों से अधिक समय हो चुका है, इसलिए अब इसे चुनौती नहीं दी जा सकती। अन्य प्रतिवादियों ने कहा कि याचिका देरी से दाखिल की गई और ओएनजीसी ने जानबूझकर श्रमिक संघों को पक्षकार नहीं बनाया। उनका कहना था कि अधिसूचना को उचित परामर्श और जांच के बाद लागू किया गया था और सरकार को इसे जारी करने का पूरा अधिकार था। विस्तृत सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि धारा 10 के तहत ठेका श्रम की नियुक्ति पर प्रतिबंध लगाने से पहले केंद्र सरकार को सलाहकार बोर्ड से परामर्श करना अनिवार्य है। मामले के रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि केंद्रीय सलाहकार बोर्ड से कोई परामर्श नहीं हुआ और केंद्र सरकार ने केवल उप समिति की रिपोर्ट के आधार पर अधिसूचना जारी कर दी। कोर्ट ने पाया कि उप समिति की ओर से केवल चार प्रतिष्ठानों का निरीक्षण दर्शाता है कि सरकार ने पर्याप्त तथ्यों पर विचार नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि धारा 10(2) के प्रावधान अनिवार्य हैं और इनका उल्लंघन किसी भी अधिसूचना को अवैध और निरर्थक बना देता है। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद ओएनजीसी में ठेका श्रमिकों की नियुक्ति पर लगे तीन दशक पुराने प्रतिबंध को हटाने का मार्ग साफ हो गया है। यह फैसला न केवल ओएनजीसी बल्कि अन्य सार्वजनिक उपक्रमों के लिए भी महत्वपूर्ण नजीर माना जा रहा है, जहां ठेका श्रमिकों की नियुक्ति को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहे हैं।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 17, 2025, 10:29 IST
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