UP: भूकंप आने से पहले मिलेगी चेतावनी....आरबीएस बिचपुरी की एआई तकनीक, जिससे मिलेगी प्राकृतिक आपदा की जानकारी

राजा बलवंत सिंह इंजीनियरिंग टेक्निकल कैंपस बिचपुरी की शोधार्थी स्वाति ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित विशेषज्ञ प्रणाली की ओर से भूकंप पूर्व सूचक की पहचान एवं पूर्वानुमान शीर्षक से शोध कार्य शुरू किया है। शोधार्थी स्वाति डिपार्टमेंट ऑफ एप्लाइड साइंसेज में डॉ. देवव्रत पुंढीर के निर्देशन के अंतर्गत शोध छात्रा है। शोध छात्रा ने बताया है कि इस परियोजना का उद्देश्य भूकंप से पहले पृथ्वी और आयन मंडल में होने वाले सूक्ष्म विद्युत चुंबकीय परिवर्तनों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) की मदद से पहचानना और उनका विश्लेषण करना है। इसमें दो प्रमुख आंकड़ों का उपयोग किया जा रहा है। ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम टोटल इलेक्ट्रॉन कंटेंट (जीपीएस—टेक) यह आयनमंडल में इलेक्ट्रॉनों की संख्या बताता है। वहीं, यूएलएफ (अल्ट्रा लो फ़्रीक्वेंसी) और वीएलएफ (वेरी लो फ़्रीक्वेंसी) यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में आने वाले सूक्ष्म बदलावों को मापते हैं। शोधार्थी स्वाति ने कहा कि इन दोनों संकेतों का संयुक्त विश्लेषण यह समझने में मदद करेगा कि, भूकंप से पहले कौन-से विद्युत चुंबकीय पैटर्न उत्पन्न होते हैं और उन्हें समय रहते कैसे पहचाना जा सकता है। ऐसे कार्य करता है यह सिस्टम शोधार्थी स्वाति बताती हैं कि जब पृथ्वी की गहराई में चट्टानें टूटती हैं, तो ऊर्जा के साथ विद्युत आवेश भी उत्पन्न होते हैं। ये आवेश आयन मंडल तक पहुंचकर इलेक्ट्रॉन घनत्व और रेडियो तरंगों के प्रसार को प्रभावित करते हैं। इसी परिवर्तन के कारण जीपीएस सिग्नलों की तीव्रता और फेज़ में असामान्य बदलाव दर्ज किए जाते हैं। भूकंप से पहले पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में यूएलएफ (0.001–30 हर्ट्ज) और वीएलएफ (3–30 किलोहर्ट्ज) रेंज में विशेष तरंगें देखी जाती हैं। स्वाति इन सूक्ष्म परिवर्तनों को पहचानने के लिए वेवलेट ट्रांसफॉर्म, सपोर्ट वेक्टर मशीन (एसवीएम) और न्यूरल नेटवर्क जैसे आधुनिक एल्गोरिदम्स का प्रयोग कर रही हैं। रिसर्च लैब में 24 घंटे दर्ज होते हैं संकेत यह शोध सिस्मो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एंड स्पेस रिसर्च लैब में डॉ. देवव्रत पुंढीर के निर्देशन में चल रहा है। इस रिसर्च लैब में 24 घंटे जीपीएस, यूएलएफ और वीएलएफ रेंज के संकेत रिकॉर्ड किए जाते हैं। डॉ. पुंढ़ीर लंबे समय से भूकंप पूर्व सूचक, स्पेस वेदर और आयन मंडलीय विक्षोभों पर कार्यरत हैं। आगरा जैसे अपेक्षाकृत शांत भू-क्षेत्र में इन संकेतों का अध्ययन अधिक स्पष्टता से किया जा सकता है। डॉ. पुंढीर का कहना है हमारा उद्देश्य केवल भूकंप संकेतों की पहचान नहीं, बल्कि एक ऐसी एआई आधारित विशेषज्ञ प्रणाली विकसित करना है, जो रियल टाइम में डेटा का विश्लेषण करके समय रहते चेतावनी दे सके। भविष्य में यह प्रणाली अन्य भूभौतिक घटनाओं के अध्ययन में भी उपयोगी होगी। भारत को मिल सकता है वैश्विक नेतृत्व संस्थान के निदेशक अकादमिक प्रो. ब्रजेश कुमार सिंह ने बताया है कि भारत का लगभग 59 प्रतिशत भूभाग भूकंप संभावित क्षेत्रों में आता है। ऐसे में यदि यह तकनीक सफल होती है, तो यह राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसियों (एनडीएमए) और बचाव दलों के लिए वरदान साबित हो सकती है। कहा कि यह शोध न केवल भारत बल्कि जापान, नेपाल, इंडोनेशिया जैसे अन्य भूकंप-प्रवण देशों के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है। सफलता की स्थिति में भारत को भूकंप पूर्वानुमान तकनीक में वैश्विक नेतृत्व मिलने की पूरी संभावना है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 05, 2025, 10:12 IST
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