CAPF: इंस्पेक्टरों की अवमानना याचिका पर अदालत सख्त, ITBP IG होंगे पेश तो BSF के शीर्ष अफसरों को दी हिदायत

केंद्रीय अर्धसैनिक बल 'भारत संघ के सशस्त्र बल' हैं, जब दिल्ली हाईकोर्ट ने इसी आधार पर इन बलों को पुरानी पेंशन देने का फैसला दिया तो सरकार उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चली गई। वित्त मंत्रालय के 2008 में जारी एक कार्यालय ज्ञापन 'ओएम' में कहा गया था कि जिन कर्मियों का 48 सौ रुपये का 'ग्रेड पे' है और वे उसमें चार साल की सेवा कर चुके हैं तो उनका 'ग्रेड पे' 54 सौ रुपये हो जाएगा। यह बात केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में स्वत: ही लागू नहीं होती। इसे लागू कराने के लिए अदालतों का सहारा लेना पड़ता है। गत वर्ष आईटीबीपी के इंस्पेक्टर सुशील कुमार ने दिल्ली कोर्ट से यह लड़ाई जीती तो इसके बाद बीएसएफ के लगभग सवा सौ इंस्पेक्टरों ने भी अदालत की शरण ली। वे भी जीत गए। नतीजा, केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चली गई। वहां पर एसएलपी खारिज हो गई। इसके बावजूद याचिकाकर्ताओं को न्याय नहीं मिल रहा। दिल्ली हाईकोर्ट ने अब सख्त लहजा अपनाते हुए कहा है कि आईटीबीपी के आईजी 'पर्स' 26 अगस्त को अदालत के समक्ष पेश हों। दूसरी तरफ बीएसएफ के 129 इंस्पेक्टरों के मामले में भी हाईकोर्ट ने कहा है कि 24 सितंबर से पहले 5400 का 'ग्रेड पे' लागू नहीं होता है तो विभाग के संबंधित अफसर दिल्ली हाईकोर्ट में मौजूद रहें। 9 सितबंर 2024 को दिल्ली हाईकोर्ट ने आईटीबीपी के इंस्पेक्टर सुशील कुमार के मामले में कहा था कि इसे लागू करो। सरकार ने एसएलपी फाइल कर दी। वो भी डिसमिस हो गई। दिल्ली हाईकोर्ट ने बोला कि आठ सप्ताह में फैसले को लागू करो और 18 अगस्त 2025 तक यह रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाए। 18 अगस्त को 2025 को मामले की सुनवाई हुई। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, मामले में अदालत के आदेश का पालन नहीं हुआ है। अवमानना केस 46/2025 के तहत अदालत ने सीधा आदेश दिया कि आईटीबीपी के आईजी 'पर्स' वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर 26 अगस्त को पेश हों। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस अनीश दयाल ने बीएसएफ इंस्पेक्टरों के मामले में यह आदेश दिया था। बीएसएफ के इंस्पेक्टर आनंद प्रताप सिंह व अन्य ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष अवमानना याचिका दायर की थी। इसमें गोविंद मोहन और अन्य को पार्टी बनाया गया था। सबसे पहले इस मामले में आईटीबीपी के इंस्पेक्टर सुशील कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। गत वर्ष लंबे संघर्ष के बाद उनकी जीत हुई। अदालत ने उन्हें 54 सौ ग्रे पे देने का फैसला सुनाया। उसके बाद बीएसएफ के इंस्पेक्टर भी अदालत में पहुंच गए। इतना ही नहीं, सीआरपीएफ के इंस्पेक्टर भी अदालत में जाने की तैयारी करने लगे हैं। खास बात है कि आईटीबीपी के इंस्पेक्टर सुशील कुमार को इस केस में यूं ही जीत नहीं मिली थी। सुशील कुमार के केस में सरकार, सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी में चली गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल 2025 को एसएलपी, खारिज कर दी। यानी सुशील कुमार का केस कन्फर्म हो गया। इसके बाद डीजी बीएसएफ ने 14 मई को केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ संचार किया। इसमें कहा गया कि सुशील कुमार के केस के दिल्ली हाईकोर्ट ने 9 सितंबर 2024 को फैसला सुनाया था। उसे सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी 13406/2025 के जरिए चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल के अपने फैसले में एसएलपी को खारिज कर दिया। इस मामले में बीएसएफ के लीगल अफसरों की राय ली गई है। उन्होंने अपनी राय में कहा है कि अब दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश लागू किया जाना जरुरी है। अब कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है। ऐसी स्थिति में एनएफयू का जो केस है यानी बीएसएफ इंस्पेक्टर आनन्द प्रताप सिंह का, उसे 54 सौ का 'ग्रेड पे' दे दिया जाए। डीजी ने इस संबंध में एमएचए से उचित दिशा निर्देश जारी करने की प्रार्थना की। इस बाबत रेस्पोंडेंट यानी एमएचए की तरफ से कहा गया कि इस पिटीशन में कुल 129 लोग (इंस्पेक्टर) हैं, सभी के लिए यह फैसला लागू करने का अनुरोध किया है। सरकार के वकील द्वारा कहा गया कि बीएसएफ के इंस्पेक्टर आनंद प्रताप सिंह के मामले में उक्त आदेश लागू हो गया है। अब 129 को भी उक्त फायदा दिया जाए। हालांकि सरकारी वकील यह नहीं बता पा रहे कि कितने समय के भीतर यह फैसला लागू होगा। कोर्ट ने कहा कि मंत्रालय को फैसला लागू करने के लिए, अनंतकाल का समय नहीं दिया जा सकता। कोर्ट इसके लिए अनंतकाल तक इंतजार नहीं कर सकती है। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस अनीश दयाल ने अपने फैसले में कहा, 24 सितंबर 2025 को यह केस लिस्ट किया जाए। यह देखेंगे कि तब तक ये फैसला लागू हुआ है या नहीं। अगर इस तय अवधि में ये फैसला लागू नहीं होता है तो संबंधित अफसर कोर्ट में मौजूद रहें। बता दें कि बीएसएफ के इंस्पेक्टर आनंद प्रताप सिंह व अन्य ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष याचिका लगाई थी कि उन्हें 48 सौ रुपये के 'ग्रेड पे' में काम करते हुए चार साल से अधिक समय हो गया है, लेकिन सरकार उन्हें 54 सौ रुपये का वेतनमान नहीं दे रही। यह वेतनमान सहायक कमांडेंट का होता है। इंस्पेक्टर के बाद अगली पदोन्नति बतौर 'सहायक कमांडेंट' होती है। पदोन्नति तो तभी मिलती है, जब पद खाली हों। इसमें तो दस पंद्रह साल तक लग जाते हैं। तब तक इंस्पेक्टरों को सहायक कमांडेंट का ग्रेड पे देने का प्रावधान है, ताकि इन्हें आर्थिक नुकसान न हो। सूत्रों के मुताबिक, बीएसएफ इंस्पेक्टरों के मामले में विभाग ने बाधा खड़ी करने का प्रयास किया, मगर दिल्ली हाईकोर्ट ने कोई बात नहीं सुनी। यह तर्क दिया गया कि इंस्पेक्टरों को 'मॉडिफाइड एश्योर्ड करियर प्रोग्रेसन' (एमएसीपी) में यह ग्रेड मिला है। इस मामले को एमएसीपी में फंसाने की कोशिश हुई। वरिष्ठ अधिवक्ता अंकुर छिब्बर ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष गत वर्ष दिए गए फैसले का हवाला दिया। दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई करने वाले जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शैलैंद्र कौर ने कहा था, ये एमएसीपी का केस ही नहीं है। इंस्पेक्टरों को चार वर्ष से 48 सौ का 'ग्रेड पे' मिल रहा है तो वे 54 सौ के ग्रेड पे में आने के अधिकारी हैं। गत वर्ष दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस शैलेंद्र कौर ने आईटीबीपी के इंस्पेक्टर सुशील कुमार के मामले में 9 सितंबर को यह फैसला सुनाया था। आईटीबीपी के इंस्पेक्टर सुशील कुमार की दलील थी कि केंद्र सरकार ने ग्रुप बी के सभी कर्मियों को यह फायदा दिया है, मगर इसमें केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को छोड़ दिया गया। मामले की सुनवाई के बाद सुशील कुमार की जीत हुई। अदालत ने उन्हें 54 सौ ग्रे पे देने का फैसला सुनाया। इसके बाद सीआरपीएफ और बीएसएफ में ऐसे सैकड़ों इंस्पेक्टरों 'जीडी' को उम्मीद बंधी, जो डेढ़ दशक से अधिक अवधि बीत जाने के बाद भी सहायक कमांडेंट नहीं बन सके हैं। सुशील कुमार के मामले के बाद वे भी अदालत में याचिका लगाने की तैयारी करने लगे। बीएसएफ के इंस्पेक्टर आनंद प्रताप सिंह व अन्य ने याचिका लगा दी। इस मामले में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का हवाला भी दिया गया। बीएसएफ के इंस्पेक्टरों ने विभाग से आग्रह किया कि जब कोर्ट ने सुशील कुमार के केस में यह फैसला दिया है तो उन्हें भी उक्त लाभ दिया जाए। विभाग की तरफ से कहा गया कि अभी इस संबंध में गृह मंत्रालय से आदेश नहीं आया है। विभाग द्वारा जब इस मामले को गोलमोल करने का प्रयास हुआ तो बीएसएफ इंस्पेक्टरों ने दिल्ली हाईकोर्ट की शरण ली। बीएसएफ इंस्पेक्टरों के केस में हाईकोर्ट ने कहा, अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 'स्टे' नहीं हुआ तो यह आदेश लागू किया जाए। सर्वोच्च अदालत से इस बाबत कोई उल्ट आदेश आता है तो वह याचिकाकर्ताओं के पक्ष में हुए दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश को प्रभावित करेगा। दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस शैलेंद्र कौर ने आईटीबीपी निरीक्षक के मामले में सितंबर 2024 को फैसला सुनाया था। अदालत की सुनवाई में बताया गया कि वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने 29 अगस्त 2008 को एक कार्यालय ज्ञापन जारी किया था। इसमें कहा गया था कि जिन कर्मियों का 48 सौ ग्रेड पे है और उन्होंने चार साल की नौकरी कर ली है, तो उनका ग्रेड पे 54 सौ हो जाएगा। इस मामले में सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स 'सीबीडीटी' में कार्यरत कर्मियों को यह फायदा नहीं मिला। इस मामले में सीबीडीटी के इंस्पेक्टर एम सुब्रमणयम, '167/2009' कैट में चले गए। कैट ने भी इंस्पेक्टर के पक्ष में फैसला नहीं दिया। उसके बाद एम सुब्रमणयम, मद्रास हाईकोर्ट '13225/2010' में चले गए। सरकार ने अदालत में कहा, आपको ये लाभ नहीं मिलेगा। जो पदोन्नत होकर आए हैं, उन्हीं को ये लाभ मिलेगा। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा, उक्त कर्मचारी को यह लाभ दिया जाए। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ, सरकार सुप्रीम कोर्ट 8883/2011 में चली गई। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले की सुनवाई के बाद सरकार को लताड़ लगाई। मद्रास हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा। केंद्र सरकार, इसके बाद भी संबंधित कर्मचारी को फायदा देने के लिए तैयार नहीं हुई। सरकारी अपील भी 10 अक्तूबर 2017 को डिसमिस हो गई। सरकार ने एक नहीं, बल्कि दो रिव्यू दो पेटिशन किए थे। ये भी 23 अगस्त 2018 को डिसमिस कर दिए गए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इस मामले में जो एसएलपी रिजेक्ट की गई थी, केस का वही स्टे्टस रहेगा। इसके बाद सीबीडीटी ने भी सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंजूर कर लिया। सुप्रीम कोर्ट में पेटिशन रद्द होने के बाद केंद्र सरकार ने ग्रुप बी में यह आदेश लागू कर दिया। मतलब, वित्त मंत्रालय के 2008 में जारी कार्यालय ज्ञापन 'ओएम' के अनुसार, जिन कर्मियों का 48 सौ रुपये का ग्रेड पे है और उन्होंने चार साल की नौकरी कर ली है, उनका ग्रेड पे 54 सौ रुपये हो जाएगा, ये फायदा दे दिया। सरकार ने कहा, यह आदेश केवल ग्रुप बी वालों के लिए ही लागू होगा। हालांकि यह पे ग्रेड तो ग्रुप ए में भी आता है, लेकिन ग्रुप बी में ही ये फायदा दिया गया। इसके पीछे वजह बताई गई कि ग्रुप बी में कमजोर वर्ग है, उन्हें आर्थिक तौर पर सफल बनाना है। केंद्र सरकार ने उस वक्त एक नई शर्त लगा दी। सरकार ने कहा, सभी को ये फायदा नहीं मिलेगा, केवल पदोन्नति वालों को ही दिया जाएगा। खास बात है कि केंद्र सरकार ने सभी विभागों में यह फायदा दिया, लेकिन अर्धसैनिक बलों को इससे बाहर रखा। ग्रुप बी 'सिविल' वालों को लाभ मिला, लेकिन केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को नहीं दिया। आईटीबीपी इंस्पेक्टर 'फार्मासिस्ट' सुशील कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। उसमें कहा गया कि मद्रास उच्च न्यायालय ने इस केस में फैसला दिया है। हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट ने भी इस केस में फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित रखा है। सुशील कुमार ने उक्त फैसलों के आधार पर 21 जून 2020 को आईटीबीपी को लीगल नोटिस भेजा था। बल ने उसे 18 सितंबर 2020 को रिजेक्ट कर दिया। उसके बाद 43321/2021 रिट पेटिशन किया। दिल्ली हाईकोर्ट ने यह कहकर पेटिशन को डिस्पोज कर दिया कि विभाग इस रिट पेटिशन को ही प्रतिवेदन मानें। इसी पर एक विस्तारित आदेश जारी करें। इसके बावजूद विभाग ने प्रतिवेदन को 24 सितंबर 2021 को रिजेक्ट कर दिया। उसके बाद रिट पेटिशन हाईकोर्ट में लगाई गई। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने आईटीबीपी से कहा है, आठ सप्ताह में याचिकाकर्ता को वित्त मंत्रालय के 2008 में जारी कार्यालय ज्ञापन 'ओएम' के अनुसार, फायदा दिया जाए। ये फायदा, छह जुलाई 2019 से देना होगा। सीआरपीएफ और बीएसएफ में सिपाही से लेकर निरीक्षक तक और कैडर अफसर, खासतौर पर सहायक कमांडेंट, पदोन्नति के लिए परेशान हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने सीआईएसएफ में इंस्पेक्टर (एग्जीक्यूटिव) और सहायक कमांडेंट (एग्जीक्यूटिव) की पदोन्नति को लेकर एक अहम फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट के समक्ष बताया गया कि सीआईएसएफ में इंस्पेक्टर से सहायक कमांडेंट बनने की योग्यता 5 वर्ष है, मगर पदोन्नति मिलने में 19 साल लग रहे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस शैलेंद्र कौर की खंडपीठ ने गृह मंत्रालय/सीआईएसएफ को आदेश दिया था कि चार माह में पदोन्नति के रास्ते खोजें। इस मामले में यूपीएससी/डीओपीटी के द्वारा समय-समय पर जारी कार्यालय ज्ञापन के आधार पर मामले का निपटारा करें।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Aug 23, 2025, 13:41 IST
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