लापरवाही: सालाना 77 लाख टन कार्बन उत्सर्जन... फिर भी हरित ऊर्जा अपनाने में अस्पताल सुस्त

उत्तर प्रदेश के वंचित जिलों में से एक कासगंज में जिला अस्पताल जल्द ही हरित ऊर्जा से लैस होने वाला है। यहां एलईडी लाइटों की रोशनी से लेकर एसी और पानी को ठंडा-गर्म करने तक की सुविधा सौर ऊर्जा से संचालित होगी। दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर दूर इस अस्पताल के साथ साथ आसपास के स्वास्थ्य केंद्र भी हरित ऊर्जा अपना रहे हैं। 14 किलोमीटर दूर सोरों सूकर क्षेत्र स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र इसका उदाहरण है जहां चिकित्सा अधिकारी डॉ. मुकेश कुमार कहते हैं, अब हमें बिजली जाने का तनाव नहीं रहता है। छत परपांच किलोवाट क्षमता का सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित है। हमें लाइट स्विच ऑन करने, कंप्यूटर इस्तेमाल करने या फिर प्रिंट आउट लेने में दो बार नहीं सोचना पड़ता। इससे पहले तक हमें एक ऐसे पावर बैकअप सिस्टम निर्भर रहना पड़ता था जो कुछ ही घंटों में बंद हो जाता था। साल 2019 से उत्तर प्रदेश सहित देश के लगभग परसभी राज्यों में मौजूदा अस्पतालों को नवीकरणीय ऊर्जा से जोड़ने की कवायद चल रही है। हालांकि अब तक किसी भी राज्य में 100 फीसदी हरित अस्पताल नहीं हो पाए। यह स्थिति तब है जब जलवायु परिवर्तन के इस दौर में बिजली खपत और कार्बन उत्सर्जन को लेकर भारत के अस्पताल सबसे बड़े केंद्र बने हुएहैं क्योंकि हाल ही में जारी राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) की रिपोर्ट बताती है कि दो लाख से अधिक भारत के सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में हर घंटे औसतन 97 लाख मेगावाट बिजली की खपत हो रही है जिसकी वजह से सालाना 77 लाख टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हो रही है। भारत के लिए हरित अस्पताल क्यों जरूरी भारत के तत्कालीन स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने नवंबर 2024 में जारी पत्र में कहा कि पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन का सामना कर रही है। इस संकट से भारत की स्वास्थ्य सेवाएं भी अछूती नहीं हैं। मौसम की चरम घटनाएं, बिजली कटौती और संसाधनों की कमी सीधे तौर पर मरीजों की देखभाल को प्रभावित करती है। इसलिए हमारे अस्पतालों में ऊर्जा खपत और कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा का अधिकतम उपयोग जरूरी है। पहले से ज्यादा हरित अस्पताल : मंत्रालय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे शहरों में तक हरित अस्पतालों का विस्तार सीमित है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों में सौर ऊर्जा को अपनाने के प्रयास जारी हैं। अगर राज्यवार स्थिति देखें तो कुछ जगह इन कार्यों की गति सुस्त हो सकती है। यह भी सही है कि कस्बे और ग्रामीण इलाकों में अभी भी पारंपरिक बिजली खपत मॉडल को अपनाया जा रहा है जिनकी संख्या काफी अधिक है जिन्हें जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने के लिए फिलहाल हमारा प्रयास जारी है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Aug 24, 2025, 07:24 IST
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