दिल्ली दंगा केस: कोर्ट में उमर खालिद समेत पांच की जमानत पर पुलिस ने जताया विरोध, कहा- खेल रहे विक्टिम कार्ड
दिल्ली पुलिस ने दिल्ली दंगों की व्यापक साजिश के मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम, मीरान हैदर, गुलफिशा फातिमा और शिफा उर रहमान की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा है कि ये सभी विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर दिल्ली पुलिस ने कहा है कि याचिकाकर्ता लंबी कैद के आधार पर विक्टिम कार्ड खेलने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि वे खुद मुकदमे में देरी के लिए जिम्मेदार हैं। हलफनामे में तर्क दिया गया है कि देरी के आधार पर जमानत का कोई आधार नहीं बनता है। याचिकाकर्ता स्वयं दुर्भावनापूर्ण और शरारती कारणों से मुकदमे की शुरुआत को स्थगित करने के लिए जिम्मेदार हैं। दिल्ली पुलिस का कहना है कि याचिकाकर्ताओं का प्रयास पूरे भारत में सशस्त्र विद्रोह भड़काना था। इसके अलावा दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि अभियुक्तों का आचरण, उनके विरुद्ध उपलब्ध अकाट्य और प्रत्यक्ष साक्ष्यों के अलावा उन्हें अदालत से जमानत की कोई भी राहत पाने से अयोग्य बनाता है। हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ता द्वारा रची गई साजिश का उद्देश्य सांप्रदायिक सद्भाव को नष्ट करके देश की संप्रभुता और अखंडता पर प्रहार करना था। उनका मकसद भीड़ को न केवल सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने के लिए बल्कि उन्हें सशस्त्र विद्रोह के लिए उकसाना था। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि उनके द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्य बताते हैं कि याचिकाकर्ता इस तरह की साजिश को पूरे भारत में अंजाम देना चाहते थे। रिकॉर्ड में मौजूद साक्ष्य बताते हैं कि इस साजिश को पूरे भारत में दोहराने और अंजाम देने की कोशिश की गई थी। दिल्ली पुलिस का कहना है कि देश की अखंडता और संप्रभुता की जड़ों पर हमला करने वाले सर्वोच्च स्तर के जघन्य अपराध के लिए याचिकाकर्ताओं को जमानत नहीं दी जा सकती। दिल्ली पुलिस ने एक अन्य आरोपी के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा की गई इस टिप्पणी का भी हवाला दिया कि मुकदमे में देरी के लिए आरोपी स्वयं जिम्मेदार थे। दिल्ली पुलिस के अनुसार, उमर खालिद दिल्ली दंगों का मुख्य षड्यंत्रकारी था और उसने हिंसा के पहले चरण की योजना बनाने में शरजील इमाम को सलाह दी थी। पुलिस ने दावा किया कि दिसंबर 2019 में इमाम के व्हाट्सएप चैट से दंगों के शुरुआती चरण की योजना बनाने में उसकी सक्रिय भूमिका का पता चलता है। पुलिस ने आगे आरोप लगाया कि खालिद ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों से अलग, दंगे भड़काने के एक साधन के रूप में चक्का जाम का विचार गढ़ा और उसने शरजील इमाम और आसिफ इकबाल तन्हा के माध्यम से इसे लागू किया, जिसके परिणामस्वरूप शाहीन बाग और जामिया में विरोध स्थल बनाए गए। यह दावा किया गया कि 13 दिसंबर, 2019 को जामिया में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क उठी, जिसके परिणामस्वरूप नागरिक और पुलिसकर्मी घायल हुए। हलफनामे में यह भी आरोप लगाया गया है कि जनवरी 2020 में खालिद ने सीलमपुर में गुलफिशा फातिमा, नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और अन्य लोगों के साथ एक गुप्त बैठक की, जहां उसने कथित तौर पर उन्हें स्थानीय महिलाओं को हिंसा भड़काने के लिए हथियार और सामग्री इकट्ठा करने के लिए संगठित करने का निर्देश दिया। जब यह योजना कथित रूप से विफल हो गई तो खालिद ने जहांगीरपुरी की महिलाओं को जाफराबाद विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए संगठित किया ताकि अशांति बढ़ाई जा सके। पुलिस ने गुलफिशा फातिमा पर एक प्रमुख स्थानीय समन्वयक के रूप में काम करने का आरोप लगाया, जिसने शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शनों को हिंसक प्रदर्शनों में बदलने की योजना को अंजाम देने में मदद की। जामिया समन्वय समिति के सदस्य के रूप में मीरान हैदर पर कई विरोध स्थलों की देखरेख करने, धन इकट्ठा करने और प्रदर्शनकारियों को पुलिस और गैर-मुसलमानों पर हमला करने के लिए प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया गया था। इसी तरह शिफा-उर-रहमान पर सीएए विरोधी और एनआरसी विरोधी प्रदर्शनों की आड़ में विरोध प्रदर्शनों का आयोजन और वित्तपोषण करने का आरोप लगाया गया था। जस्टिस अरविंद कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ शुक्रवार को खालिद और अन्य द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट के दो सितंबर के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 30, 2025, 17:55 IST
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