चिंताजनक: अनुशासन के नाम पर शारीरिक दंड देने से टूट रहा बचपन, हर साल 120 करोड़ बच्चे हो रहे यातना के शिकार
बच्चों को अनुशासन सिखाने के नाम पर मारना पीटना दुनिया भर के करोड़ों घरों और स्कूलों में अब भी आम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ताजा रिपोर्ट ने इसे वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट करार दिया है। रिपोर्ट बताती है कि शारीरिक दंड से बच्चों के व्यवहार, विकास या सेहत पर कोई सकारात्मक असर नहीं होता, बल्कि इसका दीर्घकालिक असर उनकी मानसिक, बौद्धिक और सामाजिक प्रगति को गहरा नुकसान पहुंचाता है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 18 साल से कम उम्र के आधे से अधिक यानी करीब 120 करोड़ बच्चे हर साल किसी न किसी रूप में शारीरिक दंड का सामना करते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि हर मिनट औसतन 2,283 बच्चे कहीं न कहीं इस यातना से गुजर रहे होते हैं। इनमें से 17 फीसदी बच्चों को तो सिर, चेहरे या कान पर मारने और बार-बार जोर से पीटने जैसे गंभीर रूपों का भी सामना करना पड़ता है। जिन बच्चों को बार-बार दंड दिया गया, उनके विकास की गति अपने साथियों की तुलना में औसतन 24 फीसदी धीमी पाई गई। ये भी पढ़ें:-मनसुख मंडाविया बोले: ओलंपिक की मेजबानी के लिए तैयार रहे भारत, 10 खेल देशों में शामिल होने का प्रयास करें बढ़ जाते हैं तनाव से जुड़े हार्मोन बच्चों में तनाव से जुड़े हार्मोन बढ़ जाते हैं जिससे डिप्रेशन, चिंता, आत्महत्या के विचार और आत्मविश्वास की कमी जैसी गंभीर मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यह प्रभाव जीवनभर बना रहता है और बड़े होकर ऐसे बच्चे हिंसक व्यवहार, नशे की लत और आपराधिक प्रवृत्ति की ओर झुक सकते हैं। डब्ल्यूएचओ के स्वास्थ्य निर्धारक विभाग के निदेशक एटियेन क्रूग ने कहा कि शारीरिक दंड का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं होता। न तो बच्चों को लाभ होता है और न ही परिवार और समाज को। अब समय आ गया है कि इस हानिकारक प्रथा को खत्म किया जाए, ताकि बच्चे घर और स्कूल दोनों जगह सुरक्षित रह सकें। ये भी पढ़ें:-Rain Aleart: राजस्थान, जम्मू-कश्मीर में स्थिति विकराल; दिल्ली-एनसीआर समेत कई राज्यों में भारी बारिश का अलर्ट दिव्यांग बच्चों को ज्यादा खतरा रिपोर्ट के अनुसार शारीरिक दंड का सबसे बड़ा खतरा उन बच्चों को है जो विकलांगता से पीड़ित हैं। इसके अलावा ऐसे बच्चे भी ज्यादा हिंसा का शिकार हैं जिनके माता-पिता खुद बचपन में दंड का शिकार रहे हों, जिनके घरों में गरीबी, नशे की समस्या, डिप्रेशन या अन्य मानसिक बीमारियां मौजूद हैं और जो नस्लीय, सामाजिक या आर्थिक भेदभाव का सामना कर रहे हैं। क्षेत्रीय असमानताएं भी रिपोर्ट में साफ झलकती हैं। भारत में लगभग 50 फीसदी से अधिक भारत में बच्चों पर हिंसा के आंकड़े बेहद गंभीर हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और यूनिसेफ के अध्ययनों के अनुसार देश में लगभग 50 से 60 प्रतिशत बच्चे किसी न किसी रूप में शारीरिक दंड या हिंसा के शिकार हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 25, 2025, 05:47 IST
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