Moradabad News: टैरिफ का असर, कारखानों में रह गए एक तिहाई कारीगर
मुरादाबाद। पीतल, तांबे और तमाम धातुओं की बेनूर और बदरंग सिल्लियों को आकर्षक डिजाइन के बर्तनों में ढालकर पुरस्कार पाने वाले कारीगर परेशान हैं। अमेरिकी सरकार द्वारा थोपे गए टैरिफ का असर ऐसा है कि कारखानों में काम नहीं है। जहां 20 कारीगर काम कर रहे थे, वहां अब आठ रह गए हैं। कारखानेदार एसोसिएशन का कहना है कि यही स्थिति रही तो कारखानों में ताले लगाने होंगे। कारखानेदारों को चिंता है कि बिजली का बिल, नगर निगम द्वारा लगाया गया वाणिज्यिक टैक्स और कारीगरों का पारिश्रमिक कैसे निकालें। कच्चे माल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और निर्यातकों की तरफ से उन्हें नए ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। जिले में करीब 50 हजार कारीगर और दो हजार कारखानेदार हैं। ये सभी जिले की 2200 निर्यात इकाइयों को हस्तशिल्प उत्पादों के ऑर्डर तैयार कर सप्लाई करते हैं। करूला में कारखाना चलाने वाले परवेज आलम कहते हैं कि ज्यादातर कारीगर केरल, नेपाल, दिल्ली और मुंबई में काम की तलाश में निकल गए हैं। तमाम कारखानों में बमुश्किल 20 से 22 दिन का काम बचा है। निर्यातकों की तरफ से स्प्रिंग मेले को लेकर कुछ ऑर्डर हैं, जिन्हें तैयार करना है। इसके अलावा नया काम नहीं मिल रहा है। पीरजादा में कारखाना चलाने वाले आजम अंसारी कहते हैं कि गमीनत है क्रिसमस के ऑर्डर निकल गए हैं। इन दिनों दिवाली और नए साल को लेकर डेकोरेटिव आइटम के ऑर्डर की भरमार रहती थी लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। 00दिवाली के ऑर्डर भी कम, नहीं दिख रही पीतल की चमक कारखानेदार एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि अगस्त के अंत में दिवाली के लिए ऑर्डर मिलने शुरू जाते थे। मथुरा, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा व उत्तर प्रदेश के शहरों में पीतल की मूर्तियां, तांबे के लोटे, आरती की थाली, दीपक, छोटी घंटियां, मंदिर के गुंबद आदि के तमाम ऑर्डर आते थे। इस बार इन ऑर्डरों की संख्या 50 प्रतिशत है। रूस व अन्य यूरोपीय देशों से मिलने वाले ऑर्डर ही कारखानों में तैयार हो रहे हैं। पीतल, एल्यूमिनियम की सिल्ली और स्टील की चादर का पेट बढ़ने से कारखानेदार परेशान हैं। 00प्रदेश के हस्तशिल्प निर्यात में आधी हिस्सेदारी मुरादाबाद कीप्रदेश से जितना हस्तशिल्प के उत्पादों का निर्यात होता है, उसमें आधी हिस्सेदारी मुरादाबाद की है। इसके बावजूद हस्तशिल्पियों के प्रोत्साहन व उनके संरक्षण के लिए कोई खास योजना नहीं है। पद्मश्री शिल्पकार दिलशाद हुसैन और पद्मश्री बाबूराम यादव कहते हैं कि सरकार ने प्रशिक्षण के लिए केंद्र खोले, लेकिन वहां प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है। लोगों को नया काम शुरू करने के लिए बैंकों से ऋण लेने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। सरकार की मंशा साफ है, लेकिन निचले स्तर पर मॉनिटरिंग बढ़े तो शिल्पकारों की मदद हो सकेगी।00इन मोहल्लों में बनते हैं दुनिया में पसंद किए जाने वाले उत्पादपीरजादा, मकबरा, बरबालान, मुगलपुरा, करूला, जामा मस्जिद, फैज गंज, गुइयां बाग, मुफ्ती टोला, कटघर। 00कारखाने में सिर्फ आठ कारीगर रह गए हैं जबकि पहले 25 लोग काम करते थे। नया काम बिल्कुल नहीं है। कारीगरों की दिहाड़ी कहां से निकालें। कच्चा माल हर दिन महंगा हो रहा है। पीतल की सिल्ली 580 रुपये प्रति किलो हो गई है। - परवेज आलम, कारखानेदार 00पिछले दो-तीन साल से स्थिति बहुत खराब है। छह माह काम चलता है और छह माह किसी न किसी वजह से मंदी रहती है। अब टैरिफ के कारण स्थिति कोरोना जैसी हो गई है। कई कारीगर काम की तलाश में दिल्ली और नेपाल चले गए हैं। - नोमान मंसूरी, कारखानेदार 00वर्ष 2002 तक जिले में दो लाख लोग दस्तकारी का काम करते थे। हर साल यह संख्या कम हो रही है। लगभग 50 हजार लोग ही अब इस काम से जुड़े हैं। इन्हें जोड़े रखना भी चुनौती है। उत्पादन बढ़ाने के लिए शिल्पकार बेहद अहम हैं। - नजमुल इस्लाम, संरक्षक, एमएचईए
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 28, 2025, 02:11 IST
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